और कितने बाबा? देश में बढ़ते बाबा तंत्र का जिम्मेदार कौन

दिन शुक्रवार, दिनांक 25 अगस्त 2017, समय दोपहर 2:00 बजे के बाद हुई Dr Gurmeet Ram Rahim Singh Ji Insan नामक बाबा जी की गिरफ़्तारी नें एक बार फिर देश में फैले बाबा तंत्र को उजागर कर दिया है। राम रहीम कहलाने वाले बाबा 15 साल की लड़की के साथ बलात्कार के दोषी पाये गए फलस्वरूप हाई कोर्ट नें उनको फ़िलहाल 7 साल की सजा सुनायी है। बलात्कार के अलावा बाबा पर एक पत्रकार की हत्या का भी आरोप है, देखना होगा की क्या बाबा की सजा और आगे बढ़ायी जाएगी या वे 7 साल बाद रिहा हो जायेंगे।

यहाँ विषय उनकी गिरफ़्तारी या रिहाई का नहीं है; विषय है हिन्दुस्तान में फैले बाबा तंत्र और इनके पालन पोषण का। गुरमीत राम रहीम पहले ऐसे बाबा नहीं जिन्हें बलात्कार या अन्य आपराधिक कार्य में लीन पाया गया हो। विगत कुछ वर्षों में हिंदुस्तानी समाज नें कई ऐसे बाबाओं को जाना जो दोहरे चरित्र के हैं; समय और जगह के हिसाब से वे सभी अपने असल चरित्र को उजागर करते हैं। तो क्या दोहरे चरित्र वाले बाबाओं का खेल गुरमीत राम रहीम पर आकर ख़त्म होगा या अभी आगे चलेगा? तो बताइये अगला कौन है जो कानून के शिकंजे में फंसेगा?….मैं जानता हूँ कि आपके पास मेरे इस सवाल का जवाब नहीं है; पर सवाल जायज है। खैर यह कोई नहीं बता सकता कि अगला बाबा कौन है…और फिर अगले के बाद अगला कौन है…फिर उसके बाद अगला कौन है?? लो बन गयी न एक श्रंखला। मेरा अभिप्राय समझाने का यही है की भारत वह देश है जहाँ धर्म और भक्ति ही इसकी संस्कृति मानी जाती है।

भारत में हिन्दू धर्म के इतिहास को अगर हम खंगालें तो यहाँ ईश्वर, ऋषि, मुनि, संत, विद्द्वानों की एक लम्बी श्रंखला दिखाई देगी जो आदि काल से चलकर आज 21वीं सदी के भौतिक युग में प्रवेश कर गयी है। मैं यहाँ धर्म के ऊपर प्रश्न नहीं लगा सकता क्योंकि वह शुद्ध है निर्मल है पारदर्शी है; मैं पुराणों वेदों उपनिषेदों व् कथाओं में व्याप्त उन तमाम ऋषि, मुनि, संत, विद्द्वानों के ऊपर भी प्रश्न नहीं लगा सकता क्योंकि उन्होंने अपने ज्ञान उपदेशों से मनुष्य जाती का मार्गदर्शन किया है। पर ये कौन से बाबा रुपी संत हैं जिन्होंने भारतवर्ष की संस्कृति और हिन्दू धर्म का उपहास बना कर रख दिया है ! ….कौन हैं ये? किन किताबों में है इनकी व्याख्या…कहाँ से अवतरित होते हैं ये…किन ग्रंथों व् पुराणों में इनके नाम हैं? कोई जवाब है!! मैं और आप सभी निरुत्तर हैं क्योंकि प्रश्न तो है पर जवाब नहीं। अगर जवाब नहीं तो फिर इनकी अंधभक्ति क्यों? अगर जवाब नहीं तो इनके प्रति ये दीवानगी क्यों?…ये पागलपन क्यों? क्यों है इनसे मिलने की चाहत? क्यों है इनके प्रति समर्पण भाव? मुझे यह सारे प्रश्न परेशान कर रहे हैं कोई उत्तर तो दे।

मैं अपने लेख में यह बात भी कह दूँ कि जिस प्रकार अंगूर के गुच्छे में सभी अंगूर खट्टे नहीं होते उसी प्रकार इन सांसारिक बाबाओं की श्रंखला में भी सभी बलात्कारी या अपराधी नहीं। ज्ञान एक खोज का विषय है; असल बाबा कौन है यह भी एक खोज है। पर शायद इंसान को बहुत जल्दी है, भला क्यों वह अपना मूल्यवान समय नष्ट करे असल ज्ञान व् संत की खोज में। सच तो ये है कि असल ज्ञान की खोज किसे है .. कौन मिलना चाहता है असल संत से? कोई नहीं। भला ज्ञान प्राप्त करना इतना सरल कहाँ जो सभी को मिल जाये; क्या इतना सरल है सच्चे ऋषि मुनि संत व् विद्द्वान से मिलना? यह तो एक अनंत खोज है जिसके लिए एक जीवन काफी नहीं।

अगर ये सारे बाबा असली संत नहीं, असली ज्ञानी नहीं, असली विद्द्वान नहीं फिर कौन हैं?

जिस प्रकार गंगोत्री से निकले वाली गंगा शुद्ध होती है निर्मल होती है शीतल होती है दूधिया व् पारदर्शी होती है उसी प्रकार हिन्दू धर्म ग्रंथो से निकलने वाले तमाम ऋषि मुनि संत विद्द्वान शुद्ध थे। परन्तु जैसे जैसे गंगा का निर्मल नीर भोग विलासिता के शहर में आकर मैला व् दुर्गन्ध युक्त हो जाता है उसी प्रकार यह तमाम बाबा भोगी विलासी और बाज़ारू होने के सिवाय कुछ नहीं रह जाते।

कौन हैं इनके पीछे चलने वाले लोग, कौन है इन बाबाओं का दीवाना, क्यों है इतना इनके लिए पागलपन?

यह प्रश्न भारत में सामाजिक खाई को दर्शाता है। वह मनुष्य जो इन भोगी बाबाओं के पीछे आँखें बंद किये भाग रहा है उसे किसी ज्ञान से कोई वास्ता नहीं; उसे नहीं है चाहत असली संत से मिलने की, उसे नहीं जाना किसी ब्रम्ह की खोज में। वह बहुत साधारण मनुष्य है, समाज का सताया हुआ एक दुःखी प्राणी है जिसे अपने तमाम दुःखों से निजात पाना है।

क्या दुःख हैं उसके?

आभाव है किसी के पास पैसों का, किसी को पुत्र प्राप्ति की चाहत है, किसी की पुत्री अब तक नहीं ब्याही गयी, कोई पिता अपने बेटे की बीमारी से चिंतित है, किसी का घर-बार छीन गया, कोई सदियों से अपने हक़ के लिए कोर्ट के दरवाजे खटकटा रहा है, किसी के पास नौकरी नहीं है तो किसी का व्यापार नहीं चल रहा है। बस यही दुःख है इन्हें जिसकी पूर्ति हेतु ये साधारण मनुष्य एक ढोंगी और पाखंडी के सामने नतमस्तक हुए जाते हैं इस आशा से की आज नहीं तो कल बाबा हमारे सभी दुःखों को हर लेंगे।

कौन है दोषी इनके दुःखों का?

दरअसल इनके दुःखों का दोषी कोई और नहीं बल्कि समाज में मौजूद वही प्राणी है जो इनके लिए प्रतिदिन – मूर्ख, अनपढ़, ग़रीब, निर्धन, दलित, छोटा, गन्दा और तुच्छ जैसा शब्द निकालता रहता है। समाज से लगतार उपेछित होता एक तबका आशा और उम्मीद लिए जा मिलता है इन बाबाओं से। बड़े बड़े पांडालों, मुख से निकलने वाले प्रेम और आदर्श के शब्दों से इन साधारण मनुष्यों को मोहित किया जाता है। ज़ख्मों को कुरेदकर, दुःख और पीड़ा याद दिलाकर इन अति साधारण मनुष्यों को बाबा नामक जीव मनोवैज्ञानिक तरीके से इनको अपना ग़ुलाम बना लेता है, फिर ये वही करते हैं जो बाबा चाहता है।

हक़ीक़त ये है कि इंसान अपनी आवश्यकताओं का ग़ुलाम होता है। जैसे कोई नौकरी करके ग़ुलाम है तो कोई सेवा करके, क्योंकि सभी को आवश्यकतायें पूरी करनी हैं। समाज में ऊपर पायदान पर बैठा व्यक्ति जब सामान्य से दिखने वाले प्राणी का शोषण करने लगता है तो फिर वह असहाय व्यक्ति जा बैठता है बाबा जी की गोद में। असल में दोषी तो समाज का वह अग्रणी इंसान है जो इन साधारण मनुष्य का मार्गदर्शन नहीं करता, उसके मैले लिबास को देखकर दूरी बना लेता है।

अग्रणी कौन हैं और क्या हैं उसके दायित्व?

शिक्षित, ताकतवर व् धनवान ही समाज का अग्रणी व्यक्ति कहलाता है जिसका प्रथम दायित्व है समाज की सेवा। परन्तु सेवा भाव तो अब रहा नहीं, पैसे का भूखा ग़रीब नहीं अमीर व्यक्ति है। वह जितना अमीर होता है उतना अधिक भूखा हो जाता है; धन एकत्रित करने की उसकी आपार लालसा साधारण मनुष्य को लीलने लगती है। एक कुशल डॉक्टर महँगी फीस लेता है, कुशल वकील महँगी फीस लेता है, कुशल शिक्षक महँगी फीस लेता है; यही नहीं पुलिस अधिकारी फीस लेता है, नेता फीस लेता है…समाज के ताकतवर और अग्रणी व्यक्तियों को केवल अपनी फीस की चिंता है समाज की नहीं।

आखिर यह साधारण मनुष्य जाए कहाँ? चारोँ तरफ मची रुपये की होड़ और अफरा तफरी से तंग आकर वह साधारण मनुष्य जा पहुँचता है बाबा की शरण में, उसे लगता है की केवल बाबा ही उसके एक मात्र शुभचिंतक हैं। सामाजिक सेवाभाव से दूर होता अग्रणी व्यक्ति जाने अनजाने में ही भारतीय समाज को कमजोर और अन्धविश्वास के दलदल में धकेलता जा रहा है।

बाबाओं के यहाँ जमा हुई भीड़ किसी ज्ञान प्राप्ति के लिए नहीं बल्कि अपने भौतिक दुःखों से निजात पाने के लिए एकत्रित होती है। उन तमाम लोगों को जो बाबा जी के पांडाल में प्रतिदिन एकत्रित होते हैं, उन सभी को वहां तक धकेलने का जिम्मेदार समाज ताकतवर इंसान ही है जो अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता। खेतों खलिहानों से निकलता हुआ हिन्दुस्तान आज बेशक 21वीं सदी के डिजिटल वर्ल्ड में प्रवेश कर गया है पर उसकी अधिकतम आबादी अभी वहीँ ठहरी हुयी है जहाँ वह कई वर्ष पहले थी। यह कहना गलत नहीं होगा की देश में सामरिक बदलाव नहीं आये; बदला तो सिर्फ एक खास तबका। क्यों ठहरा रह देश का सामरिक बदलाव?…! इसके पीछे है देश की राजनिति और वे लोग जो आगे आकर दूसरे का हाथ थामने से कतराते रहे।

लोगों को बाबाओं से जोड़ने में क्या देश की राजनीति और नेता भी शामिल हैं?

इस प्रश्न पर कोई मुर्ख ही ना कहेगा। तमाम राजनीतिक दलों के नेतागण जिस प्रकार बाबाओं के सामने नतमस्तक होते हैं वे जाने अनजाने में भारतीय समाज को उस बाबा तक पहुँचाने का कार्य करते हैं। जब लोगों को यह पता चलता है कि उस बाबा के पास तो वे नेताजी भी गए थे तो उन्हें यकीन हो जाता है कि बाबा जरूर चमत्कारी होंगे वरना भला नेताजी जिनके पास सबकुछ है वे क्यों जाते। पांडालों में आगंतुकों की संख्या 1 से सौ, 100 से हजार, 1000 से लाख में तब्दील होने लगती है, धीरे-धीरे यह गिनती इतनी बड़ी हो जाती है की उसे गिनना मुश्किल हो जाता है। आखिर यह क्यों होता है? साफ़ शब्दों में कहूं तो यह आकर्षण भाव से होता है, प्रेरित होकर होता है…जिसे देहाती भाषा में देखा देखी कहते हैं। यह देखा देखी को जन्म देने वाला कौन है? यह वही नेता है जो उस बाबा के सामने हथजोड़कर खड़ा होता है। समाज को कौन सी दिशा दे रहें हैं हमारे नेता…? मार्गदर्शन देने वाले ही दिगभ्रमित करने का कार्य करते हैं। बेशक, राजनीतिक दल और नेता पूर्णरूप से जिम्मेदार हैं बाबाओं की बढ़ती प्रसिद्धि और लोकप्रियता के लिए।

फ़िल्मी सितारे, खिलाड़ी, पुलिस, टी वी पत्रकार, या फिर कोई बड़ा अधिकारी क्या ये भी अपना कर्तव्य भूल गए हैं?

(क)- हमारे फ़िल्मी सितारे, हीरो हीरोइन वैसे तो ये आधुनिकता का एक जीता जागता उदहारण हैं पर ये भी कम दोषी नहीं। थोड़े रुपये पैसे के लालच में ये सभी बाबाओं के इशारे पर नाचते दिखाई देते हैं। लोग जिनकी हेयर स्टाइल तक कॉपी करते हैं क्या वे इन सितारों का अनुसरण नहीं करेंगे जब ये बाबा से मिलेंगे? बाबाओं के आगे इनका भी हाथ जोड़ना, फोटो खिचवाना व उनकी तारीफ करना समाज के साधारण व्यक्ति को प्रेरित करता है उस बाबा का अनुसरण करने को।

(ख)- खेल की दुनियां से आने वाले खिलाडियों का भी यही हाल है; ये भी बाबा का ब्रांड अम्बेसेडर बनने से नहीं कतराते। हमारी पुलिस “For You With You Always” का नारा देने वाली जो सभी भी खाकी वर्दी के साथ बाबा के आगे पीछे घूमते हैं, उन्हें प्रणाम करते हैं। बड़े अधिकारी बाबाओं को निमंत्रण देते हैं अपने किसी उद्घाटन कार्य में और यह अपना सौभाग्य समझते हैं की बाबा नें उद्घाटन किया है तो आगे सब अच्छा होगा।

(ग)- टी वी पत्रकार, अब भला ये कैसे पीछे रहें ! इनको समाज में व्याप्त दुःख और तकलीफ से कोई सरोकार नहीं; इनके लिए पत्रकारिता का अर्थ है चापलूसी। टी वी के सामने कोट पैंट टाई में बैठने वाला यह पत्रकार नाम का प्राणी इन बाबाओं को अपने शो में आमंत्रित करता है। वैसे यह शो वे पैसा लेकर ही आयोजित करवाते हैं जिससे बाबा जी अपनी मार्केटिंग अच्छे से कर सकें।

जिन साधारण लोगों को हम मुर्ख अनपढ़ की संज्ञा देते हैं, सच तो ये है कि उनको बाबा की शरण में जाने को प्रेरित एक समझदार इंसान ही करता है जिसे मैंने समाज का ताकतवर और अग्रणी व्यक्ति कहा। यह देखने लायक है कि कैसे उस बाबा के समर्थन में कुछ मतलबी लोग जनमानस को प्रतिदिन प्रेरित कर रहे हैं।

क्या क्या बंद होना चाहिए?

हमने पाया कि साधारण जनमानस को अंधभक्ति की तरफ धकेलने वाला कोई और नहीं समाज का अगड़ा वर्ग ही है।

1 – बाबाओं को उनके मन के मुताबिक मिलने वाली जमीनें, महल जैसे दिखते उनके आश्रम, उनकी सुरक्षा में लगे पुलिस अधिकारी, महंगी गाड़ियों का काफिला, इनको प्राप्त होने वाला करोड़ों का चंदा ये सब तत्काल प्रभाव से हटा देने चाहिए। देश के हर राज्य में इनको आसानी से जमीनें मिल जातीं है जो सरकार इनको मुहैया कराती है। नतीजा ये होता है की देश के कोने कोने से इनके श्रद्धालू बनने लगते हैं। आम नागरिक से टैक्स वसूलने वाली सरकार इनकी कमाई का ब्यौरा मांगे और इनको उतनी ही जमीन आवंटित करे जिसमें ये स्वयं रह सकें ना की अपना पूरा जथा साथ रखें। आश्रम देश के किसी एक राज्य में ही बनना चाहिए हर जगह नहीं। समय समय पर इनके द्वारा किये जाने वाले कार्यों की समीक्षा करनी चाहिए।

2 – बंद हो इनका टी वी पर आना और साथ में बंद हों भक्ति व् आस्था के सभी चैनल जो कहीं न कहीं इनके लिए प्रचार प्रसार करते नजर आते हैं। संत को टी वी की दुनिया से क्या लेना…वह तो सांसारिक मोह से खुद को अलग मानता है ऐसे में जिन श्रद्धालुओं को इनका प्रवचन सुनना है वे रुख करें इनके आश्रम का ना की टी वी पर।

3 – पब्लिक से खुले आम चंदे के रूप में माँगा जाने वाला पैसा कहाँ जा रहा है? किस काम में इस्तेमाल हो रहा है? सरकार द्वारा उसकी कड़ी निगरानी हो। निर्मल बाबा जैसे तो खुले आम टी वी पर अपना बैंक अकाउंट भी शेयर करके कहते हैं की अगले समागम में आने के लिए आज ही अपनी सीट बुक करें। जांच हो उन खातों की जिसमें यह सारा पैसा जाता है और खर्च होता है।

4 – यह भी देखा गया है कि बाबा अपने साथ पिस्टल और रिवाल्वर तक रखता है आखिर क्यों? आत्म रक्षा के लिए..पर किससे? वह तो संत है भला उसे कोई क्यों मरेगा। किसी भी तरह का हथियार साथ रखने पर मनाही हो और यदि वह बाबा चोरी से ऐसा करता है तो जेल जाए।

6 – सरकार द्वारा बड़ी सिक्योरिटी फोर्सेज और पुलिसिया बल इनकी सुरक्षा में तैनात ना किया जांय। बिना वजह इनपर देश का पैसा लुटाना उचित नहीं, इनको अपनी जान का कैसा खतरा; दिन रात इनकी हिफाजत बंद हो।

7 – लक्ज़री गाड़ियों का काफिला एक नहीं 10, 50, 100 या फिर 800; ऐसे भी बाबा हैं जिनके पास ऐसी-ऐसी गाड़ियां हैं जिसे खरीदना आमजन के बस का नहीं। कहाँ से आती हैं यह गाड़ियां कौन देता है इन्हें। जब इनका काम केवल प्रवचन और कथा वाचन का है तो इतना पैसा कहाँ से आया की ये महँगी गाड़ियां खरीदें। इन परिस्थितियों में फ़ौरन जांच बैठायी जाय।

8 – पल में विदेश की सैर कर आने वाले ये बाबा आखिर वहां कैसे चले जाते हैं और क्यों जाते हैं? यह भी निगरानी में रखा जाय की बाबा कब और कहाँ जा रहा है। हमने देखा की इनके आश्रम केवल भारत में ही नहीं विदेशों में भी हैं आखिर कैसे? किसने बनवाया इनका आश्रम, कहाँ से पैसा मिला, क्यों बनवाया और वहां से कितना पैसा आ रहा है? ये सब जाँच के घेरे में शामिल किया जाय और रोक लगायी जाय।

9 – सोने और चाँदी के चढ़ावों पर पूर्णतः प्रतिबन्ध हो। जो व्यक्ति इनको ऐसे तोहफे देता है उससे पूछताछ किया जाय की क्यों दिया उसने यह महंगा तौफा। इनके द्वारा जमा की गयी सारी राशि में से कुछ ही हिस्सा इनको दिया जाय बाकी सरकार अपने खजाने में शामिल करे।

10 – बाबा के पास किसी भी तरह का निवेश करने का अधिकार न हो और साथ ही वह कहीं भी अपनी कोई निजी संपत्ति भी न बना सके। यह भी ध्यान रखना जरूरी है की बाबा अपने रिश्तेदारों, बच्चों, माँ पिता या बीवी को किस प्रकार की सुविधाएं मुहैया करा रहा है। ऐसा देखने में आता है कि ये बाबा अपने नाम पर कोई प्रॉपर्टी ना लेकर अपने रिश्तेदारों के नाम पर लेने लगते हैं।

भारतीय शिक्षा व्यवस्था में धर्म ज्ञान का आभाव:

देश में फैले बाबा गिरोह के प्रति आकर्षण भाव रखने वाली केवल महिलाएं ही नहीं युवा युवती भी हैं जिसकी जिम्मेदार है देश की शिक्षा व्यवस्था। स्कूलों, कॉलेजों व् विश्वविद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा पूरी तरह से पेशेवर है। बेशक तमाम किताबों को पढ़कर अनगिनत परीक्षाएं उत्तीर्ण कर हम एक अच्छी नौकरी तो अर्जित कर लेते हैं किन्तु असल ज्ञान का हमें कोई ज्ञान नहीं होता। हमारी किताबों को बहुत ही कमर्शियल तरीके से बनाया जाता है जिसमें ज्ञान कम भौतिकवाद की छवि ज्यादा झलकती है।

भारतवर्ष अपनी सभ्यता, संस्कृति, भिन्न प्रकार के मजहब, वेद और पुराणों के लिए जाना जाता है; पर इसी देश के स्कूलों व् विद्यालयों की किताबों में सदियों पुरानी इस धरोहर का कहीं कोई वर्णन नहीं मिलता। क्या पढ़ा रहे हैं हम अपनी युवा पीढ़ी को? यकीनन हम अच्छे इंजीनियर, डॉक्टर और वकील तो बन जाते हैं पर धर्म ज्ञान का अभाव हमें एक अच्छा इंसान बनने से वंचित कर देता है। समय आ गया है कि पाठ्य पुस्तकों में सभी धर्म को समाहित कर उसकी भी शिक्षा दी जाय। पूर्ण धर्म ज्ञान हमें परिपक्क्व बनायेगा, विवेकशील बनायेगा, विद्वान बनायेगा, सत्य – असत्य की पहचान समझायेगा और साथ ही बाबा रुपी ढोंग पाखंड के समीप जाने से भी रोकेगा।

और कितने बाबा?

पाखंडी बाबाओं का चलता कारवां क्या राम रहीम पर आकर थम जायेगा? मेरे खयाल से तो नहीं ! राम रहीम जैसे बाबा कभी ना ख़तम होने वाली श्रंखला की एक कड़ी मात्र हैं; अभी जाने कितने नित्यानंद, आशाराम, रामपाल और राम रहीम देखने बाकी हैं। पूंजीवाद की चक्की में पिस्ता एक साधारण जनमानस अपनी भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु स्वतः ही अनगिनत पाखंडी बाबाओं का सृजन करता रहेगा। उसके द्वारा सृजित हर बाबा राम रहीम हो कह नहीं सकता, पर यह सत्य है कि कलयुग में महऋषियों की प्राप्ति नहीं की जा सकती।

समाज में मौजूद चंद रसूखदार लोगों का संगठन जो प्रतिदिन इन बाबाओं का लालन पालन करते हैं, उनसे एक बंद कमरे में अपने व्यक्तिगत लाभ व् हिस्सेदारी की चर्चा करते हैं; असल में देश में फैली अंधभक्ति के प्रमुख कारक यही हैं। समाज के निचले तबके को मुर्ख, अज्ञानी, अबोध, ग़रीब, कमजोर, लाचार की संज्ञा देने वाले ये तमाम रसूखदार स्वयं बाबाओं के प्रचारक की भूमिका अदा करते हैं। वास्तविकता यह है कि पिछड़ा व्यक्ति इतना भी अज्ञानी नहीं, वह तो केवल इन रसूखदारों द्वारा क्रियान्वित एक भीड़ का हिस्सा है जो गलती से एक पाखंडी को बाबा मान बैठता है। दोषी तो ये रसूखदार हैं देश में फैली अंधभक्ति और झूठे बाबा तंत्र के।

यहाँ देश में मौजूद उन लोगों को भी सोचना होगा की वे सभी इन पाखंडी बाबाओं के पीछे कब तक भागेंगे। मनुष्य अपने कर्म के माध्यम से ही सुखों की प्राप्ति कर सकता है जिसकी व्याख्या दुनियां के समस्त धर्मों नें की है। जो लोग निर्मल बाबा की ‘हरी चटनी’ से कृपा की आस लगाये बैठे हैं वे अपनी अज्ञानता के उच्च शिखर पर जा पहुंचे हैं जहाँ से उनका वापस नीचे आना असंभव है। Messenger of God नामक फिल्म को देखने वाले भी यह सोचें धर्म और ज्ञान 3 घंटे की फिल्म का विषय नहीं है; धर्म के करीब जाने के लिए स्वयं को शुद्ध करना अनिवार्य है।

बाबा की खातिर अपने हाथ में लाठी, डंडे और बंदूख लिए लोग तनिक एक बार भारत के धार्मिक इतिहास में झाँक कर देखें की किन संतों नें हिंसा के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया है। जब तक जनमानस में यह बोध नहीं आएगा तब तक प्रतिदिन एक नया बाबा जन्म लेता रहेगा।