बाबरी मस्जिद – कब और किसने बनवाई ?

अयोध्या मामले की सुनवाई 8 फरवरी तक टाल दी गई है, लेकिन 8 फरवरी के बाद इसकी सुनवाई लगातार होगी। बाबरी विध्वंस 6 दिसम्बर 1992 को हुआ था। जी हां 25 साल हो चुके हैं और शायद जहाँ से शुरुआत हुई थी इस केस की आज भी हम वहीं पर खड़े हैं। आज भी किसी एक पक्ष का कोई बयान आ जाये तो दुसरे की भावना आहात हो ही जाती है। आप कहीं भी ये मसला छेड़ दें माने की इस विषय पर चर्चा शुरु कर दें तो लोग आपको कहते हैं कि बाबर नें ये मस्जिद बनवाई लेकिन इतिहास की मानें तो बाबर कभी अयोध्या गया ही नही और न ही उसने ये मस्जिद बनवाई। आप सोच रहे होंगे जितने मुहं उतनी बात लेकिन जब हमने खोजबिन की तो आम लोग ही नहीं इतिहासक़ारों के भी इसपर अलग-अलग मत हैं। इस विशिष्ट तथ्य पर मैं आपको दोनों की बात बताना चाहूंगा।



स्वर्गीय कमलेश्वर के उप्यान्स ‘कितने पकिस्तान’ के अनुसार:

स्वर्गीय कमलेश्वर के सन 2000 में आये उपन्यास “कितने पकिस्तान” जिसको उन्होंने लगभग 15 साल के गहन अध्यन के बाद लिखा। जिसमे उन्होंने बहुत से ऐतिहासिक तथ्यों की छानबीन की, हमें नहीं पता ये उपन्यास आपने पढ़ा है या नहीं लेकिन आपको ये बात बताते चलें कि जब ये उपन्यास आया तब हिंदी ही नहीं अंग्रेजी अखबारों नें इस उपन्यास की समीक्षा छापी। कई लेखकों और साहित्यकारों ने इस उपन्यास को “विश्व उपन्यास” भी कहा जिसमें अमृता प्रीतम , राजेन्द्र यादव और हिमांशु जोशी प्रमुख थे। सबसे बड़ी बात “अटल बिहारी” के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार नें उनको इस किताब की लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी भी नवाज़ा। यह बात जग जाहिर है कि ये पुरस्कार तभी दिया जाता है जब सरकार लिखी हुई किताब के हर पन्ने से सहमत होती है, मतलब की वो मानती है कि जो किताब में लिखा गया है वो सच और सही है।

इस किताब के अनुसार बाबर के भारत आने से पहले अयोध्या में मस्जिद थी। जब बाबर नें 20 अप्रैल 1526 को “इब्राहीम” का सर कलम करके आगरा की गद्दी संभाली और उसके ठीक हफ्ते बाद यानि कि 27 अप्रैल को उसके नाम का खुतबा पढ़ा गया (खुतबा का मतलब होता घोषणा करना) । किताब के मुताबिक मस्जिद (बाबरी मस्जिद नहीं) में एक शिला लेख बनाया गया था जिसे अंग्रेजी हुकूमत नें नष्ट करवा दिया इस शिला लेख को नष्ट करने से पहले उसपर लिखा गया लेख एक अंग्रेजी अफसर नें पढ़ा था। शिला लेख के अनुसार मस्जिद का निर्माण लोधी के शासन में सन 1823 में शुरू हुआ और सन 1824 में मस्जिद बनकर तैयार हुई और ये मस्जिद किसी राम मंदिर या अन्य कोई मंदिर को तोड़कर नहीं बल्कि खाली जगह पर बनाई गयी। अगर हम ये मानें कि वहां कोई मंदिर थी तो हो सकता है या तो वो 14वी सदी में तोड़ी गयी हो या किसी प्राकृतिक आपदा के कारण नष्ट हो गयी हो।




“कितने पाकिस्तान” किताब के अनुसार शिलालेख को नष्ट करने में अंग्रेजी अफसर “एचआर नेविल” नें अहम् भूमिका निभाई, सारी साजिश नेविल नें ही की क्योंकि नेविल नें ही फैजाबाद का गेजेटीयर तैयार किया था। उसके साथ एक और गोरा अफसर “कर्निघम” था, जिसके ऊपर भारत की इमारतों की देख-रेख का जिम्मा था, बाद में उसने लखनऊ का गेजेटीयर तैयार किया।

किताब के अनुसार गेजेटीयर में साजिश के अनुसार ये लिखा गया कि बाबर सन 1528 में एक हफ्ते के लिए अयोध्या आया और राम मंदिर तोड़ कर वहां माजिद की नीवं रखी और उसमें ये भी लिखा है कि बाबर की सेना नें 1 लाख 74 हज़ार हिन्दुओं को भी मार दिया। फैजाबाद का गेजेटीयर अगर आप आज देखें तो उसके अनुसार 1869 यानी की बाबर के आक्रमण के लगभग 350 साल बाद अयोध्या-फैजाबाद की आबादी मात्र 10 हज़ार थी, जो 1881 में बढकर 11500 हो गयी। अब सबसे बड़ा सवाल यह की जब 350 साल बाद आबादी इतनी कम थी तो 1528 में बाबर नें 1 लाख लोगों को कैसे मार दिया।

नेविल और कर्निघम यहीं नहीं रुके, उन्होंने बाबर की डायरी “बाबरनामा” जिसमें वो अपनी हर गतिविधि लिखता था उसके भी 20 पन्नें गायब कर दिये और जहाँ ओध यानि की अवध लिखा गया था उसे अयोध्या कर दिया। आप कितने भी शातिर हों गलती हो ही जाती है; इतना करने के बाद भी वो उस पन्ने को नष्ट करना भूल गए जिसपर “फ़्यूहरर” नें शिलालेख पर लिखे लेख का अनुवाद किया था। फ़्यूहरर वही हैं जिन्होंने शिलालेख को पढ़ा की मस्जिद लोधी नें बनवाई थी। अनुवाद आज भी “र्कियोल़जिकल इंडिया” में दर्ज है और ये नेविल और कर्निघम की काली करतूत को बयाँ करता है।

अंग्रेजों नें ये साज़िश इसलिए की क्योंकि जब देश की पहली क्रांति सन 1857 में हुई तो अंग्रेजों को लगा कि अब भारत एक सूत्र में बंध रहा है और अगर ऐसा हो गया तो उनका शासन मुश्किल हो जायेगा। इसी कारण ब्रिटिश हुकूमत नें यह योजना बनाई और धर्म के नाम पर हिन्दू व् मुस्लिम को अलग करना शुरु किया।

मीर बाक़ी ताशकंदी नें बनवाई मस्जिद:

इस मत के अनुसार बाबर सेना अवध की तरफ़ बढ़ी तो बाबर आगरा में ही रुक गया था। उसकी सेना के एक जनरल “मीर बाक़ी ताशकंदी” जो ताशकंद का रहने वाला था। बाबर नें उसे अवध प्रान्त का गवर्नर बना के भेजा था। उसी नें ये मस्जिद बनवाई और बाबर को खुश करने के लिए इसका नाम बाबरी रख दिया। कुछ लोग कहते हैं की बाबर नें ही हुक्म दिया था। मीर बाक़ी ताशकंदी नें ये मस्जिद बनवाई इस बात का इतिहास में भी जिक्र नहीं है। यहां तक की बाबरनामा में भी कुछ नहीं लिखा गया है इस बारे में; लेकिन इसका मतलब ये नहीं की ये मत गलत है वो सही है। हमको जो मिला वो सब हम आपके सामने लाये अब आप अपनी सहमती या असहमति जो भी हो वो लिखें और जुड़े रहें ऐसी ही अन्य जानकारियों के लिए पखेरू से।




 

लेखक:
विभू राय