सोशल मीडिया से बिखरता समाज

Social Media नाम तो सुना ही होगा आपने ? क्या है सोशल मीडिया, Internet की दुनियां में सबसे चर्चित कोई शब्द है तो वह है Social + Media जिससे संसार में अधिकतर आबादी जुड़ी हुई है और लगातार इसमें वृद्धी होती जा रही है। “सोशल मीडिया एक वेबसाइट और एप्लीकेशन है जिससे लोग जुड़ कर अपनी बात को अन्य लोगों के साथ साझा करते हैं” इंटरनेट पर मौजूद यह सोशल मीडिया ठीक उसी तरह है जैसे आप और मैं वास्तविक समाज में जीते हैं।

जब बात social media की हो रही है तो यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर इंटरनेट पर सोशल मीडिया को संचालित कौन कर रहा है अर्थात वह कौन से माध्यम हैं जिनको अपनाकर आप सोशल मीडिया पर अपनी मौजूदगी पुख्ता कर सकते हैं। मैं जो नाम लूंगा internet कि दुनियां से इत्तेफाक रखने वाले हर नौजवान युवा-युवती, गृहणी, बच्चे और बुजुर्ग जरूर वाकिफ होंगे। सोशल मीडिया का जिग्र होते ही जो नाम अतिप्रमुखता से आते हैं वो हैं – फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जिनके बिना सोशल मीडिया की विख्यात दुनियां अधूरी है। मगर इनके अलावा भी अन्य कई नाम हैं जिनसे social media कि दुनियां में डूबा रहने वाला व्यक्ति प्रतिदिन रूबरू होता रहता है जैसे – यूट्यूब, स्नैपचैट, इंस्टाग्राम व पिंटरेस्ट इत्यादि।

हमारी रोजमर्रा कि ज़िन्दगी, रहन-सहन, खान-पान, मेलजोल, आवागमन, पठन-पाठन, नौकरी व्यापार, घूमना फिरना, बात व्यवहार एवं खेलकूद इत्यादि सभी क्रियाकलापों में सोशल मीडिया पूर्णतः समाहित हो चुका है। हमारे जीवन पर हावी यह Social Media असल में हमें किसी के करीब न लेजाकर उससे दूर करता जा रहा है। व्यक्तिगत जीवन से छलांग मारकर सोशल मीडिया अब हमारे सामाजिक परिसर में दाखिल हो चुका है जो निरंतर समाज का ध्रुवीकरण करता जा रहा है जिसकी हमें तनिक भी परवाह नहीं है। धीमे धीमे वर्गीकृत होता समाज असल में हमारे जीवन को ही प्रभावित कर रहा है जिसमें एक व्यक्ति व परिवार सबके बीच रह कर भी पृथक है। सोशल मीडिया की पहुंच लम्बी तो है मगर यह विभाजनकारी है जो हमें जाती, धर्म के नाम पर लगातार तोड़ता रहा है। अभी तक तो यह विभाजनकारी कार्य केवल राजनेताओं के माध्यम से ही होता था पर अब हर व्यक्ति स्वयं ही इस कूकृत्य को अंजाम दे रहा है जो समाज कि एकजुटता और अखंडता को भंग करता जा रहा है।

सोशल मीडिया कैसे कर रहा है समाज का बिखराव ?

  • अपने ही प्रवृत्ति के अनुरूप लोगों को खुद से जोड़ना
  • धर्म हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई जैसे ग्रुप का बढ़ता चलन
  • जाति वर्ण विशेष के बनते अनगिनत ग्रुप
  • धार्मिक कट्टरवाद के बढ़ते ग्रुप व पेज
  • राजनीतिक पार्टियों के ग्रुप , पेज और उनसे जुड़े आरोप प्रत्यारोप से होता तुष्टिकरण
  • इंडिया पाकिस्तान जैसे राष्ट्रों के ग्रुप जिनसे विशेष वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है
  • सवर्ण और पिछड़े समुदायों पर आधारित पेज एवं ग्रुप जो समाजवाद को दूषित करता है
  • धर्म विश्वास और उनकी मान्यताओं का बनता मजाक
  • आस्था व उनके प्रतीक चिन्हों का होता गलत इस्तेमाल, अवांछनीय फोटो और वीडियो के माध्यम से बढ़ती तल्खी
  • आतंकवाद, उग्रवाद के नाम पर समाज के विशेष वर्ग को निशाने पर लेना

उपरोक्त गतिविधियों पर गर हम ध्यान दें तो क्या हम वास्तव में सोशल मीडिया का उचित इस्तेमाल कर रहे हैं या हम खुद अपने ही हाथों से अपने समाज को दूषित कर रहे हैं। यह कहना गलत नहीं है कि social media में सिर्फ “मीडिया” ही बचा है “सोशल” कहीं नहीं। बड़ी विडंबना यह है कि सोशल मीडिया की पहुंच बहुत दूर तक है; पलक झपकते ही एक झूटी बात, कोई कूतथ्त पूरे समाज में फ़ैल जाता है जिसके पीछे कि असल सच्चाई भी कोई नहीं जानता है। अब तक समाज में लड़ाई झगड़े व्यक्ति विशेष तक सीमित हुआ करते थे मगर सोशल मीडिया नें आपसी झगड़े को भी राष्ट्रिय मुद्दा बना दिया है। एक हिन्दू और मुस्लमान का सोशल मीडिया पर आपस झगड़ना महज दो व्यक्ति की बात नहीं बल्कि देश में मौजूद सम्पूर्ण हिन्दू और मुस्लिम का झगड़ा बन जाता है जिससे धर्मवादिता पनप उठती है और समाज दो भागों में टूट जाता है। इसी प्रकार अन्य कई झगड़े, विवाद रोजाना social media पर पनपते रहते हैं नतीजन वो एक बड़े सामाजिक विवाद का रूप ले लेते हैं फलस्वरूप यह देखने में आता है कि कहीं आगजनी हो गयी और अराजकता फ़ैल गयी।

सोशल मीडिया के द्वारा नित रोज जन्म लेता कोई न कोई विवाद यह दर्शाता है कि सोशल मीडिया मानव रचित ऐसा जाल है जिसमें शिकारी भी मानव और शिकार भी मानव है। समाजवाद, प्रेम, मित्रता, भाईचारे और जानकारी की मान्यता को ध्यान में रख जन्मा यह सोशल मीडिया जो इस भौतिक दुनियां में पूर्णतः अराजकता एवं हिंसा का रुप ले चुका है। मानव का यह अविष्कार आज़ादी देता है मूर्खतापूर्ण बातें करने कि, बेहिचक अमर्यादित भाषा बोलने कि, दूर किसी अन्य प्रान्त या देश में घटी अनैतिक घटना को परिवर्तित कर उसे अपने समाज से जोड़ने कि, अपने मानसिक विकारों व कुंठाओं की भड़ास निकालने कि, धर्म मान्यताओं कि खिल्ली उड़ाने कि और एक स्त्री की लाज को उतारने कि; कहना होगा गजब का अविष्कार है ये सोशल मीडिया जो मानवरुपी वास्तविक समाज कि एक काल्पनीय प्रतिलिपि बनाता है जहाँ हर कोई आज़ाद है स्वच्छंद है और बेबाक है।

मौजूदा परिवेश ऐसा है जिसमें दो तरह कि दुनियां साथ साथ चल रही है; एक जो हमें ईश्वर नें वास्तविक रूप में प्रदान की है और दूसरी जो हम मानव नें अपने जायके के अनुसार कृत्रिम रूप से बनायी है। प्राकृतिक रूप में मिली दुनियां पाकर शायद मानव नाखुश था यही वजह है कि उसनें ऐसा काम किया जिसका कंट्रोल उसी के हाथ में रहे। Social Media स्वनिर्मित दुनियां ही है जो हमारी वास्तविक दुनियां के साथ चल रही है अंतर बस इतना है कि इस स्वनिर्मित दुनियां में हमनें अपने अनुसार जायका तैयार किया है जिसमें ईर्ष्या, द्वेष, काम, क्रोध, ग्लानि, अनैतिकता, नफरत, घृणा, अहंकार का भाव कूट कूट कर भरा है जो किसी ज्वालामुखी के समान निरंतर आग उगलता रहता है और कभी कभी तो भभक कर फूट पड़ता है समाज को जलाने के लिए। रोजाना मानव अपने दिमाग के गंदे बीज को सोशल मीडिया के खेत में बोता रहता है ताकी आपसी फूट अंकुरित होती रहे; कुछ लोगों नें तो इसका ठेका भी ले रखा है अपने आकाओं को इसका सीधा लाभ पहुंचाने के लिए। भारत में धर्म को न मानने वाला इंसान एक अपराधी के समान देखा जाता है; यही वजह है कि धर्मवाद का वजूद कायम रखने में भी ये Social Media अग्रणी है। जब जब हम ऐसा कुछ देखते हैं कि इस फोटो या मैसेज को तुरंत अपने 20 मित्रों को शेयर करें अच्छी खबर मिलेगी और आपकी मनोकामना पूर्ण होगी तब तब हमारे अंदर धार्मिकता जाग उठती। वह साधारण संदेश हमें धार्मिक संदेश कि भांति प्रतीत होता है जो हमें धर्म के नाम पर डराता भी है फिर हम वही करने पर आतुर हो उठते हैं जैसा उसमें लिखा था।

प्रकृति द्वारा दी गयी इस सुन्दर दुनियां को ठुकराकर मानव सवार हो चुका है सोशल मीडिया कि अप्राकृतिक दुनियां में जहाँ जाकर उसने अपने सुंदर विचारों को मलित कर खुद को सम्पूर्ण रूप से सोशल मीडिया के हवाले कर दिया है। तनिक भी देर नहीं लगती सोशल मीडिया में पारंगत सिद्धपुरुष को अपने विचार डालते, फिर तुरंत ही शुरू होता है सिलसिला उस विचार से सहमति और असहमति जताने का; दरअसल यह एक परिक्षण है की हमें उस पारंगत व्यक्ति के विचारों के सम्मुख खुद को समर्पित करने कि संभावना कितनी है। कुछ ही समय बाद सहमति और असहमती का दो धड़ बन जाता है यानि कि विभाजन जो मानव निर्मित इस सोशल मीडिया का प्रमुख कार्य है।

बात ख़त्म करने से पहले यही कहना चाहूंगा कि सोशल मीडिया की आभासी दुनियां से बहार निकल कर सच को तलाशें। मित्रता और भाईचारे को मजबूत बनाने के लिए जमीनी स्तर पर आकर संपर्क बनायें । सभी धर्मों और उनसे जुड़ी मान्यताओं की व्याख्या सदियों पुरानी है जो ग्रंथो में दर्ज़ है; सोशल मीडिया पर मौजूद ज्ञानिओं के ज्ञान से बचें जिससे कि समाज में हो रहा बिखराव रुक सके ।

 

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा