बीत गया वो वक़्त, गुजरा गया और अब तक नहीं लौटा – हिंदी कविता

कहते हैं की गुजरा वक़्त कभी लौटकर नहीं आता, आज यह बात सच्ची मालूम पड़ती है। मनुष्य आज कितना आज़ाद है संपन्न है फिर भी वो अपने आपको इस आज़ादी में जकड़ा हुआ ही मसहूस करता है। असल में आज़ादी हमारी मानसिकता से जुड़ा हुआ एक विषय है पर हम उसे अपने व्यव्हार में खोजते हैं। मेरी लिखी कविता असल में अतीत के कुछ गुजरे किस्से हैं जो बीत गए और अब तक नहीं लौटे।

 

वो दिन जब साईकल के टायर को लकड़ी के डण्डे से नचाकर उसके पीछे भागते थे ;
आम, ईमली और बेर के पेड़ दिख जाएं तो उनपर पत्थर चलाया करते थे ;
घर आकर ये कहना कि आगे से ऐसा नहीं करूँगा, कसमें खाया करते थे ;
बीत गया वो वक़्त, गुजरा गया और अब तक नहीं लौटा ।।

वो दिन जब कहीं पिट्ठू, कहीं कंचे, कहीं लट्टू और गिल्ली डण्डे का शोर था ;
मोहल्ले का हर बच्चा खेल की बाजी लगाने में मशगूल था ;
हर बाजी पर दोस्तों से लड़ जाया करते थे, तेरे साथ नहीं खेलूँगा यही बात दोहराया करते थे ;
बीत गया वो वक़्त, गुजरा गया और अब तक नहीं लौटा ।।

वो दिन जब स्कूल में इंटरवल का बेसब्री से इंतज़ार किया करते थे ;
चोरी से क्लास के दोस्तों का टिफिन रोज चट कर जाया करते थे ;
मास्टरजी के पूछने पर ये कहना की मैंने नहीं खाया, हर बार बच जाया करते थे ;
बीत गया वो वक़्त, गुजरा गया और अब तक नहीं लौटा ।।

वो दिन जब रविवार बहुत खास हुआ करता था ;
रंगोली, चन्द्रकान्ता, अंकल स्क्रूज से प्यार हुआ करता था ;
ब्लैक एंड वाइट टीवी पर टकटकी लगाये, घर के काम से बहाने बनाया करते थे ;
बीत गया वो वक़्त, गुजरा गया और अब तक नहीं लौटा ।।

वो दिन जब हमारे कपड़े भी पापा खरीदकर लाया करते थे ;
कहीं कुर्ते की बाँह बड़ी थी, कहीं पजामा लम्बा था ;
पहन लो आगे बड़ा ही तो होना है, यह बोलकर हमें मनाया जाता था ;
बीत गया वो वक़्त, गुजरा गया और अब तक नहीं लौटा ।।

वो दिन जब स्कूल के बाद कॉलेज में दाखिला पाया था ;
हीरो की साईकल पे चढ़कर शहर के हर सिनेमाहॉल का चक्कर लगाया था ;
मम्मी मैं काम से जा रहा हूँ, फिल्म देखने का बहाना बनाया था ;
बीत गया वो वक़्त, गुजरा गया और अब तक नहीं लौटा ।।

आज ये दिन है जहाँ खुद के मालिक हम हैं ;
न कोई बोलने वाला, न कोई टोकने वाला ना हरबात पे रोकने वाला ;
फिर जीवन में क्यूँ इतना ग़म है, क्यों सबकी आँखें नम हैं ;
तुम्ही चाहते थे मॉडर्न बनना, अब काहे की चिंता, किस बात से डरना ;
यह बनायी हुई दुनियां तुम्हारी है, जहाँ केवल मशीनों से यारी है ;
बीते दिन कभी लौटकर नहीं आते, यही प्रकृति की दुनियाँदारी है।

बीत गया वो वक़्त, गुजरा गया और अब तक नहीं लौटा ।।

 

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा