हिंदी कविताएँ Hindi Kavita Archive

हिंदी काव्य – आज फिर एक बुद्धा की तलाश है

आज फिर एक बुद्धा की तलाश है !! ये नए युग का परावर्तन तो नहीं ,कि झूठ भी यथार्थ बन जाता है ,नालंदा के ज्ञानद प्रांगण में ,आज अज्ञानी भी ज्ञानी का पद पा जाता है । सच को सच कहने के लिए ,आज फिर एक बुद्धा की तलाश है । ये महाबोधि की

हिंदी कविता – राह किनारे चलता हूँ

कविता शीर्षक – राह किनारे चलता हूँ शाम को थके हारे, पीठ पर ऑफिस का बस्ता लादे मैं अपने कदम बढ़ता हूँ, राह किनारे चलता हूँ । शिथिल शरीर, व्याकुल नयन धैर्य रहित, अधीर मनमैं स्वयं से बातें करता हूँराह किनारे चलता हूँ ।। चलते-चलते कुछ दूर तलक, एक मोड़ नज़र आता हैसहसा मेरे

चिता – एक हिंदी कविता

कविता शीर्षक – चिता क्यों अपने तड़फ़ते हैं , बातें दिल पर मेरे लगाते हैं। वक्त क्यों, मेरा जटिल बनाते हैं , घूम कर देखी न अभी दुनिया मैंनें , घर में ही मेरी कब्र सजाते हैं। रिश्तेदार पूछते हैं जब मुझे, तू काम क्या करेगा , तो मैं कह देता ‘मेरी उदासी में

हिंदी कविता – फनी तूफान

फनी तूफान फनी के फन को कुचलना हैना देख इसे दहलना हैभले जोर-जोर से करे फूफ़कारकरे शोर भले यह बार-बारहम सब भी खड़े हैं तैयार करेंगे इसकी चुनौती को सहर्ष स्वीकारअपनी हिम्मत है फौलादना तोड़ पाएगा कोई तूफानयह डाल-डाल तो हम पात-पातकरेंगे मुकाबला हम साथ-साथ अपनी एकता को देख करहर संकट जाएगा दूर हटहम

हिंदी कविता – मैं अपने कामों में ईमान रखता हूँ

हिंदी कविता मैं अपने कामों में ईमान रखता हूँ सो सबसे अलग पहचान रखता हूँ सब इंसान लगते हैं मुझे एक जैसे तासीर में हमेशा भगवान् रखता हूँ है महफूज़ जहाँ मुझ जैसे बन्दों से सच से लैश अपनी जुबां रखता हूँ बना रहे हिन्दोस्तान मेरा शहंशाह अपने तिरंगे में ही प्राण रखता हूँ

हिंदी ग़ज़ल – दर्द ज्यादा हो तो बताया कर

ग़ज़ल दर्द ज्यादा हो तो बताया कर ऐसे तो दिल में न दबाया कर रोग अगर बढ़ने लगे बेहिसाब एक मुस्कराहट से घटाया कर तबियत खूब बहल जाया करेगी खुद को धूप में ले के जाया कर तरावट जरूरी है साँसों को भी अंदर तक बारिश में भिंगोया कर तकलीफें सब यूँ निकल जाएँगी

हिंदी कविता – न जाने किनका ख्याल आ गया

हिंदी ग़ज़ल न जाने किनका ख्याल आ गयारूखे-रौशन पे जमाल* आ गया जो झटक दिया इन जुल्फों को ज़माने भर का सवाल आ गया मैं मदहोश न हो जाती क्यों-कर खुशबू बिखेरता रूमाल आ गया मैं मिट जाऊँगी अपने दिलबर पेबदन तोड़ता जालिम साल आ गया मेरे हर अंग पे है नाम उसकी कायूँ

कभी खुद का भी दौरा किया कीजिए

“हिंदी कविता” कभी खुद का भी दौरा किया कीजिएजो जहर है निगाहों में पिया कीजिए झूठी सूरत, झूठी सीरत और झूठा संसारसच के खिलने का आश्वासन भी दिया कीजिए हँसी मतलबी, आँसू नकली, बेमानी सब बातेंज़ुबाँ ही नहीं, तासीर को भी सिया कीजिए हवा में सारे वायदे, बेशक़्ल सारी तस्वीरेंहिसाब को कभी तो कुछ

शायरी- तुम्हारी महफ़िल में और भी इंतज़ाम है

शायरी: तुम्हारी महफ़िल में और भी इंतज़ाम है तुम्हारी महफ़िल में और भी इंतज़ाम हैया फिर वही शाकी, वही मैकदा, वही जाम है शायर बिकने लगे हैं अपने ही नज़्मों की तरफपुराने शेरों को जामा पहना कर कहते नया कलाम हैं आप शरीफ न बन के रहें इन महफिलों मेंवरना शराफत बेचने का धंधा

जिसे जन्नत कहते हैं, वो हिन्दुस्तान हर घड़ी दिखाएँगे

कविता शीर्षक : जिसे जन्नत कहते हैं, वो हिन्दुस्तान हर घड़ी दिखाएँगे कुछ इस तरह अपने कलम की जादूगरी दिखाएँगेकिसी की ज़ुल्फ़ों में लहलहाते खेत हरी-भरी दिखाएँगे छोड़ो उस आसमाँ के चाँद को, मगरूर बहुत हैरातों को अपनी गली में हम चाँद बड़ी-बड़ी दिखाएँगे किस्सों में जो अब तक तुम सुनते आए सदियों सेमेरा