हिंदी कहानी – ऐकल्लता 1947 का जख्म

सुबह हुई आसपास के लोग अपने घरों का सामान बाँधने लगे। जितना उठा सकते थे उतना बांध लिया। करमा, अपनी घरवाली को यह कह रहा था की जब तक सभी चलने के लिए तैयार होगे मैं खेत के कोनें से जाकर दबाए चांदी के सिक्के निकालकर ले आता हूं। दो-सौ के सिक्के होंगे हमारे काम आएंगे; सुरजीत अपने बच्चों को लेकर चलने वाली थी, जो कि पाँच वर्ष की एक लड़की और सात वर्ष का लड़का था।

करमा जब खेत में सक्के खोजने गया, उस को सिक्के ढूंढते-ढूंढते में देर हो गई। सुरजीत उसका इंतजार कर रही थी, सभी तरफ लोग बंटवारे की बातें कर रहे थे। कुछ पड़ोसी हरदीप को यह कह रहे थे “करमे को अब तो बहुत देर हो गई है आ जाना चाहिए “।

हरदीप को लोग कहने लगे “हम आस्था-आस्था चलते हैं , जब तक हम गांव से बाहर जाएंगे, करमा आ जाएगा तू हमारे साथ गांव आकर मिल जाना, हम तेरा गांव के बाहर इंतजार करेंगे”।

जब करमा लौटा तो बहुत देर हो चुकी थी…..

हरदीप ने उसे बताया खतरे के कारण सब अपना सामान लेकर चले गए। गांव बाहर हमारा इंतजार कर रहे होंगे, वह कह रहे थे कि ” सिख लोगों को मुसलमान लोगों से ज्यादा खतरा है, हम सभी अपनी भाईचारे के बड़े काफिले में मिल जाएं; हमारे दुश्मन ज्यादा गिनती में हुए तो हमें काट डालेंगे”। यह बात सुनते-सुनते करमा अपने बच्चों और बीवी के साथ गांव के बाहर आया।

करमे को बाहर कोई दिखाई नहीं दिया, वो आपने साथियों के पैरों के निशान खोजते-खोजते चल दिए उसने अपनी सुरक्षा के लिए एक घर से तलवार ली थी और कुछ बर्तन, कपड़े थे खाने पीने का समान वह घर पर ही भूल गया।

वह अपने भाईचारे के लोगों के पैरों के निशान खोजते-खोजते पीछे चल दिया। उनको दूर तक कोई दिखाई नहीं दिया।

सुबह होने को थी वो लोगों भूखे प्यारे चल रहे थे……

दूसरे दिन भी चलते रहे, उन्हें अपना कोई साथी ना मिला। दोपहर हुई तो बच्चों को बहुत प्यास और भूख लगी थी। बच्चे बार-बार पानी मांग रहें थे, बच्चे भूख-प्यास से बिल्क रहें थे। करमे से अब उनका बिल्कना देखा ना जा सका। उनको बार-बार तसल्ली दे रहा था की थोड़ी दूर खाना और पानी मिल जाएगा।तभी खेतों में बैलों से पानी निकालने वाला कुआं दिखाई दिया वह सब उस कुएं की ओर चल दिए।

करमा पानी निकालने की तरतीब सोचने लगा। उसने अपनी बाल्टी को उठाया और पगड़ी खोल कर एक और बालटी को बांध दूसरी ओर पगड़ी का हिस्सा पकड़ लिया। करमे ने जैसे ही पानी की बाल्टी बाहर निकाली…….

अचानक सुरजीत ने देखा कि……..

“कुछ मुसलमान लोग तलवारे हाथ में लिय उनकी तरफ बढ़ रहे हैं। उसी समय सुरजीत ने अपने बच्चों को साथ लेकर करमे के पीछे लिपट गई और कहने लगी “वहां कुछ लोग हमारी तरफ बढ़ रहे हैं, उनके हाथों में तलवारें हैं”। वहां आठ-दस लोग थे, उसकी पत्नी ने कहा “तू अकेला है ये लोग तुझे मार कर, मेरा और हमारे बच्चों का पता नहीं क्या सलूक करेगे”।

करमे ने देखा कि वह जल्दी-जल्दी उनकी तरफ बढ़ रहे है।

उसकी पत्नी तड़फ रही थी…….
करमे की पत्नी कह रही थी,” तू हमें आपने हाथों से मार दें, तू ऐकला है”

कुछ पल करमा सोचता हैं क्या करू……

अब करमा पत्थर दिल बन चुका था करमे ने अपनी आंखें बंद कर ली और पहले पत्नी का गला काट दिया। फिर एक-एक करके अपने बच्चों का गला काट दिया।

अब दुश्मन नजदीक आ पहुँचे….

करमा तलवार से एक-वार करता और दुश्मन का गला धड़ से अलग कर देता। उसने एक-एक कर सब दुश्मनों को मिटा दिया। उसकी आखें लाल हो गई, वह पूरी तरह होश भुला बैठा था जब वह अपने परिवार वालों तथा दुश्मनों को मार चुका था।

करमा अपनी तलवार लेकर आँखों से दूर हो गया….

करमा उस स्थान बहूत दूर चला गया। यहाँ उसको कोई जानता नहीं था, करमे के लिए सब अजनबी थे।

करमा खामोश बैठा रहता, जब भी उसके सामने कोई देश के बटवारे की बात कहता तो वह उठ कर आगे चला जाता।

अब करमा अकेला ही रहता….

नफरत की आग एक खुशहाल वातावरण को अंधेरे में बदल देती है। साधु-संतों कहना है कि जो अकेला रह जाता है उसका जीवन अंधेरे से भर जाता है।

धर्म प्यार बढ़ाने के लिए बनाए जाते हैं नफरत बढ़ाने के लिए नहीं।

क्या देश बंटवारे से पहले हिंदू, सिख और मुसलमान आदि भाई-भाई की तरह नहीं रहते थे ?

 

लेखक:
संदीप कुमार नर