कथा कहानी Hindi Stories – भारतीय हिंदी कहानियां Online Archive

हिंदी कहानी – समाज

एक तरफ़ पहाड़ झाड़ियां तीन तरफ़ मैदानी इलाका, उस गाँव में गेहूँ मक्का से ज़्यादा बाग़-बागीचे तो कहीं अमरूदों के पेड़। खुशहाल गाँव के लोग एक दूसरे की अधिक से अधिक इज्जत करते जो गाँव का सरपंच कह दे, सारा गाँव उसे खिले माथे मान लेते। गाँव में लोग पशु-पालना बैलगाड़ीयाँ रखने में बड़ा

लालटेन – लघु कथा

द्वार पर बैठे ‘बाबा सुखीराम‘ ने अपने नाती-पोतों को आवाज़ मारते हुए कहा – सांझ हो गया जी, तुमलोग लालटेन नहीं बारे ? चलो सबलोग लालटेन लेकर आओ पढ़ाई करो ! प्रतिदिन शाम के 7 बजते ही ‘बाबा सुखीराम’ यूँ आवाजें मारकर बच्चों को पढ़ने के लिए बुलाते। सुखीराम अपने ज़माने के बड़े पढ़े

प्रेम मरता नहीँ

शिवा जब मरने की बात करती तो शिव को अच्छा नही लगता था। मन होता उसके बोलते हुए अधरों पर हाथ रख दे ताकि शब्द वहीँ मौन हो जाएँ और वो अपनी बात पूरी ही न कर सके, पर वो मजबूर था क्योंकि बातचीत का माध्यम तो सन्देशों का आवागमन था। मिले तो सिर्फ

पहली मुलाक़ात..(आंशिक) – हिंदी कहानी

आज पहली बार मिले थे शिव और शिवा, ख़ुशी अपने चरम पर थी…राधा कृष्ण जी के दर्शन करने के बाद दोनों वहीं एक पेड़ के नीचे बैठ गए..।  आप कुछ बताने वाली थीं…शिव ने शिवा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बड़े प्यार पूछा ! जी क्या बताएँ, कुछ भी नहीँ बस; शिवा

‘वो लड़की’ – हिंदी कहानी

सन 1993, उत्तर प्रदेश के एक छोटे कस्बे से निकलकर आज मैं एक अंजाने शहर की ओर प्रस्थान करने वाला था। उम्र महज 9 साल, गांव का एक साधारण जा जान पड़ने वाला रेलवे स्टेशन जहाँ मैं अपने पिता और माँ के साथ आने वाली ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहा था। मिलिट्री में कार्यरत

दीवारों के केवल कान नहीं आँखें भी होती हैं

” सीता राम चरित अति पावन ! मधुर सरस अरु अति मन भावन !! पुनि-पुनि, कितनेहू सुने सुनाये हिय की प्यास, बुझत ना बुझाये ! सीता राम चरित अति पावन ! मधुर सरस अरु अति मन भावन !! “ सन 1987 दिन रविवार समय सुबह 9:30 मिनट पर टीवी सीरियल ‘रामायण’ की यह चौपाईयाँ

बाबूजी हिट्लर – हिंदी कहानी

1990 का दशक बेशक कितना भी अच्छा क्यों न हो पर एक मामले में बेहद बुरा था। 1990 के दशक में बाप अपने बच्चों से हिट्लर जैसा व्यव्हार ही करते थे। घर कि लड़कियां तो शायद बच भी जायें किन्तु लड़का बाप रुपी हिटलर का फ़रमान सुनने को बाध्य रहता। तड़के भोर 4 बजे

बागीचा – हिंदी कहानी

हमेशा की तरह रामकली आज भी तड़के सबेरे 4 बजे उठ गयी। बड़ी बहु को सोता देख बुदबुदाते स्वर में कहती है – सुबह के चार बज गये, अभी तक सो रही है। कहां सास-ससुर को चाय बनाकर देती पर वो भी मुझे ही करना पड़ रहा है। बड़े भाग से मिली है ऐसी

‘दुनियां’ – हाँ इस दुनियां से जुदा एक लड़की हूँ मैं

दुनियां, मैं वैसी नहीं हूँ जैसा कि तुम मुझे देखना चाहती हो। हाँ यह बात सच है कि मैं तुमसे अलग हूँ, मैं किसी और की तरह नहीं होना चाहती क्योंकि मैं बस खुद के जैसी हूँ। मैं वह नहीं हूँ जो खूबसूरत दिखने के लिए उस महंगे काजल का सारा दिन इस्तेमाल करती

ऐकल्लता भाग – 2, अनजानी भूल

छोटे-छोटे पर्वत एक तरफ जंगल इलाका एक तरफ मैदानी इलाका दूर से देखने में ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी देवता ने इस गांव को बनाया हो। 25 से 30 मुसलमानों और सिक्ख रहते थे एक स्कूल जहां सिर्फ उर्दू की भी पढ़ाया जाता था। दो दोस्त निहाल सिंह और शौकत अली दोनों ने