अब्बा मैं यह जानती हूँ कि तुम अब्बा हो फिर भी तुम यह जान लो कि अगर मैं अब्बा होती तो मैं यूँ ना करती। हाँ, तमाम शिकायत है मुझे तुमसे शायद महज़ इसलिए कि तुम अब्बा हो। अगर मैं अब्बा होती तो यूँ कभी ना करती कि तुम्हारे कपड़े आ जाने से खुद
शाम का वक़्त था , लता रोज की तरह आज भी बकरियां चरा कर अपने घर जा रही थी। हां वो लोग बकरियां पालते थे और मिटटी के बर्तन भी बनाने का काम भी किया करते थे। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, घर में माँ-पिताजी व दो छोटी बहनें और एक छोटा
सन 1992, Montessori Junior High School जो की एक गैर सरकारी विद्यालय था; जिसमें कक्षा 1 से लेकर कक्षा 8वीं तक के बालक बालिकाएं अध्ययन किया करते थे। यह विद्यालय गैर सरकारी होते हुए भी सरकारी विद्यालयों की तरह ही जान पड़ता था, जहाँ दौर के हिसाब से व्यवस्था अत्यंत ही साधारण थी। परन्तु
“मैं तुम्हारे साथ और नहीं रह सकता” “हाँ , तो मुझे भी तुम्हारा साथ कौन सा बर्दाश्त होता है ?” “वह तो बस यूं था कि बच्चों को संभालना था वरना मैं कब का यहाँ से जा चुकी होती” “अब मुझे तुमसे तलाक चाहिए” “हाँ मैं भी यही चाहती हूँ” यह एक और रात
दिनभर की थकी-हारी बेचारी कान्ता, ज्यों ही शाम खाट पर लेटी आँख लग गयी कितना शांत होता है गांव का वातावरण, और रात तो बिल्कुल खामोश सी जान पड़ती है। कहीं कुछ हलचल थी भी, तो सिर्फ हवाओं में जो पेड़ों पर झूलते पत्तों से टकराकर शोर उत्पन्न कर रहे थे। हाथों के कंगन,
अम्मी- मैं यह जानती हूँ कि तुम यह जानती हो की वो जो औरत है, वो अब्बा की महज़ दोस्त नहीं और मैं यह भी जानती हूँ की तुम यह कभी जानना नहीं चाहती थी। जब कभी भी अब्बा रातों को दूसरे शहर में होते हैं तब यह शहर तुम्हें दोज़ख लगता है जैसे
पॉँच पॉँच भैंसें होने के बावजूद भी मुकुंद तिवारी का मन अब एक गाय लेने का भी हो रहा था। द्वार पर आवाज़ लगाते हुए अपने सेवक ब्रिज बहादुर को बोले, जा जरा अवध मिश्रा को बुला ला तो। उनसे कहना की आज से पशु मेला शुरू है, मैं सोच रहा हूँ की एक
वही रोज के ताने, कहाँ है री….आँगन में बैठी सास जोर से आवाज़ लगा रही थी। विमला अपने कमरे से बाहर निकलकर बोली बच्चे को सुला रही थी माँ जी, कहिये क्या काम है। सास नें आँखें दिखाते हुए कहा – अरे काम पूछती है तुझे दिखाई नहीं देता की घर में कितना काम
माधव की शादी को पूरे तीन बरस हो चुके थे, पर गुजरे तीन बरसों में माधव नें बहुत दुःख देखे व् सहे जिसमें से सबसे दुःखदायी पल रहा पत्नी अवंतिका की आकस्मिक मृत्यु। माधव अपनी पत्नी अवंतिका से बेहद प्रेम करता था; दोनों पति पत्नी को देख यही लगता था की यह जोड़ा सच
सुबह हुई आसपास के लोग अपने घरों का सामान बाँधने लगे। जितना उठा सकते थे उतना बांध लिया। करमा, अपनी घरवाली को यह कह रहा था की जब तक सभी चलने के लिए तैयार होगे मैं खेत के कोनें से जाकर दबाए चांदी के सिक्के निकालकर ले आता हूं। दो-सौ के सिक्के होंगे हमारे