जब भी बोलें उचित बोलें

संसार में अपने भाव व्यक्त करने का सबसे मूलभूत आधार है संप्रेषण। यह समस्त मानव विकास की आधारशिला है। अमूमन हर शख्स 3 साल की उम्र तक बोलना सीख लेता है। लेकिन कब, कहाँ, कैसे और कितना बोलना है, यह गुण सीखने के लिए उसे सारी उम्र का फ़ासला भी कम पड़ जाता है। भाषा से आगे बढ़ते हुए यदि कोई माध्यम सबसे अधिक महत्वपूर्ण है तो वह है आपकी वाणी। यह संप्रेषण के सभी दायरो को प्रत्यक्ष रुप से एक सफल मुकाम प्रदान करती है। किसी ने ठीक ही कहा है कि वाणी का मीठा होना बहुत आवश्यक है। लेकिन आधुनिक काल में आगे बढ़ते हुए वाणी के इस मीठे स्वरूप का अनुसरण करना कई मायनों में असंभव सा प्रतीत होने लगता है। तो इससे पहले यह असंभव हिस्सा पूर्ण रूप से संभव हो जाए मैं आपको वाणी से जुड़ी हुई कुछ खास बातें आपको बताना चाहूँगी ।



चलिए इसे एक उदाहरण के रूप में समझते हैं ताकि आप के लिए यह और भी अधिक सरल हो जाए। यदि आप पर कभी कोई प्रहार कर दे तो क्या आप उस समय सोचने के काबिल रहेंगे कि आप पर यह प्रहार उस शक्स न क्यों किया ? ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं होगा क्योंकि उस वक्त जो आपको महसूस हो रहा होगा वह होगा दर्द और सिर्फ गहरा दर्द । वह बात और है कि उस दर्द के कम हो जाने पर कुछ रोज़ बाद आप उस बात का शायद विश्लेषण कर सके, लेकिन यह भी मानसिक अवधारणाओं पर अलग-अलग तरह से आधारित होता है। आप मानसिक तौर से जितने मज़बूत होंगे उस प्रहार का परिणाम आपके मस्तिष्क में उतने ही कमज़ोर रूप से सामने आएगा ।




यदि आप इस हद तक बदल गए हैं कि किसी से मीठी वाणी में बात करना आप के पक्ष में नहीं तो कम से कम आप उचित वाणी में तो बात कर ही सकते हैं। जो है उसे स्पष्ट रूप से कहें ऐसा करने से आपके सामने आने वाली हर संभव अस्पष्टता दूर हो सकती है। उचित बात करने में यदि कोई भी घटक अनिवार्य है तो वह है ‘साहस’ जी हाँ, उचित बात को सामने रखने के लिए जितना साहस चाहिए होता है उतना ही उचित बात का सामने रखा जाना ज़रूरी भी होता है।किसी भी विषय पर बात करने के लिए उन बातों को घुमा फिरा कर पेश करने की जगह उन्हें अगर सीधे तौर पर पेश कर दिया जाए तो गलतफहमियों की गुंजाईश ना के बराबर होती है। रिश्तों के लिहाज़ से भी इन कुछ बातों का सामने रखा जाना बहुत ज़रूरी होता है। हमेशा वह बात कहें जो आप अपने दिल में महसूस कर रहे हैं, इससे पारदर्शिता बने रहने की भी पूरी संभावनाएं होती है। इसके विपरीत यदि आप वह बात कहते हैं जो आपके दिल से भी पूरी विपरीत है तो फिर आप अपनी वाणी को तो छलावा देंगे ही साथ ही साथ अपने ईमान को भी ठेस पहुचाएंगे । अगर आप किसी को खुश करने के लिए अनुचित बात कहते हैं तो ध्यान रखिए की आप अंततः उसे दुखी ही करेंगे ।

” ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए !
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए !! “

शेष निर्णय आपका है….।

लेखिका:
वैदेही शर्मा