21वीं सदी का न्याय

5 साल पहले 16 दिसम्बर 2012, याद है जब निर्भया कांड हुआ था और अभी कुछ दिन पहले दिल्ली से सटे गुरुग्राम मे एक महिला के साथ बलत्कार हुआ और उसके 9 महीने की बच्ची को चलते ऑटो से फेंक दिया गया। एक घटना तमिलनाडु मे भी घटी बिलकुल निर्भया जैसी, ये बातें 21 सदी का घिनौना सच है। रोज कहीं न कहीं ऐसी घटनायें होती हैं और कई घटनायें तो सामने ही नही आ पाती। लेकिन जब भी ऐसा कुछ होता है तो बहुत बुरा लगता है।

21वीं सदी का न्याय

कुछ साल पुरानी बात याद करते हैं , मेरा जन्म 1995 का है अभी 2017 चल रहा है यानी 22 साल पहले की बात है; जब ना फ़ोन था ना फेसबुक (Social Media) वो सदी थी 20वीं लेकिन 22 साल मे सब बदल गया। पहले पापा को गॅाव पैसे भेजने के लिए बहुत समय लग जाता था और सबसे तेज़ तार भी 1 दिन लेता था। आज स्मार्टफ़ोन है एक सेकंड मे विडियो कॉल हो जाती है, तब हर सामन लेने के लिए सोचना पड़ता था अब कुछ भी ले लो और अपने हिसाब से किस्तों पर पैसा दे दो।

सब बदला है और हम लोग जो 20वीं सदी के अंतिम दौर में पैदा हुए और मौजूदा बदलाव के गवाह हैं। FIR के लिए पुलिस स्टेशन जाने की जरुरत भी अब नहीं है अगर आपको सिर्फ FIR की कॉपी चाहिए तो आप ऑनलाइन पा सकते है। एक लाइन मे लिखू तो सब कुछ तेज़ हुआ है, लेकिन न्याय जस का तस है उसने हर बदलाव को अपनाया है। कंप्यूटर,एयरकंडीशन और लगभग 21वीं सदी मे बनी हर चीज़ लेकिन वो खुद नहीं बदला कि कहीं किसी बेगुनाह को सजा ना हो जाए , मै भी इस बात के साथ हॅू कि किसी बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए।

16 दिसम्बर 2012 के आरोपी आज भी जेल मे हैं न्यायालय ने उनको फांसी की सजा सुना रखी है तारीख तय नहीं है। जबकि ये साबित हो गया है कि आरोपी वही लोग हैं फिर ना जाने क्यों ये न्याय हमको ये एहसास कराने पर तुला है की हम 21वीं सदी मे नहीं जी रहे हैं। मैं कानून के खिलाफ नहीं हॅू मुझे अपने भारतीय होने पर गर्व है और मै भारत के कानून मे पूरी आस्था रखता हॅू। लेकिन अगर हम डिजिटल इंडिया की बात करते हैं तो ये बाते चुभती हैं की हम 5 साल में न्यायालय बस सजा सुना पाएं हैं और शायद यही बात है कि हम ऐसी घटनायें रोज सुन लेते हैं जो कि हमारे समाज और देश दोनों के लिए शर्मिदिंगी की बात है।

निर्भया कांड मे अगर न्याय जल्दी होता , सजा जल्दी सुनाई जाती और उस सजा को अंजाम भी दिया जाता तो एक सन्देश जाता उन लोगों को जो बलात्कार जैसे अपराध के बारे में सोचते हैं कि ये 21वीं सदी है जिस न्यू इंडिया की बात देश के प्रधानमंत्री करते हैं उस न्यू इंडिया की सदी है जिसमें अब आप नें ऐसा कुछ भी किया तो सुनवाई और सजा दोनों बहुत जल्द होगी। अंत मे यही कि मैं ये मानता हॅू कि पूरा देश ये चाहता है कि एक बार जरुर इस बात पर चर्चा होनी चाहिए की न्याय में कैसे तेज़ी लाएं क्योंकि सच मे ये बहुत ही धीरे होने वाली एक लचर और सुस्त प्रक्रिया बनकर रह गई है।