विजयादशमी जो कि सत्य के विजयी भाव का प्रतीक है

हर साल हम विजयदशमी मनाते हैं रावण को जलाते हैं। उस रावण को जिसका वध बहुत पहले भगवान राम जी ने कर दिया था। मगर उसका या उसके पुतले का दहन हम आज तक कर रहे हैं। उस रावण का दहन देखने को न जाने कितनी भीड़ लगती है। बच्चे , बूढ़े , जवान की अनगिनत संख्या देखने लायक होती है। जिनकी नजरें केवल उस एक रावण को जलते देख, उसके दहन का आनंद लेती हैं।



कभी सोचा है हम उसे क्यों जलाते हैं ? क्यों हम आज भी उसका दहन देखने को इतना उत्सुक होते हैं ? जो कि महज एक पुतला है वास्तविक नहीं, चूँकि वास्तविकता में तो वह मर चुका है।

इसके पीछे की मान्यता है कि विजयादशमी असत्य पर सत्य की विजय, बुराई पर अच्छाई की विजय तथा रावण का वध और राम की विजय का उत्सव है।
यह महज एक त्यौहार ही नहीं बल्कि कई उदाहरणों का प्रतीक है जो कि हमें पता होते हुए भी न जाने क्यों हम इसे महज एक त्यौहार के रूप में मनाते हैं। इसके पीछे की मान्यता को हम जानकर भी उससे अनजान बनते जा रहे हैं।

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उस मरे हुए रावण को हम आज भी जलाते हैं और जो हमारे अंदर का राक्षस रावण है उसकी ओर हमारा ध्यान भी नहीं जाता। उसे हम कब जलाएंगे ? जो कि न जाने कितने रूपों में हमारे अंदर मौजूद है और जिसका अंत केवल हम या हमारे अंदर का राम कर सकता है और कोई नहीं।

वह राक्षस रूपी रावण हमारे अंदर ही विराजमान है और वह देवता रूपी रामजी भी हमारे अंदर ही हैं। उस वक्त रावण के केवल 10 ही सर थे परंतु आज उसके सैंकडों शरीर व अनगिनत सर हैं। वह केवल एक रावण था जिसके वध को श्रीराम अवतरित हुए मगर अनगिनत रावण के लिए इतने राम कहां से अवतरित होंगे ?




इतने राम कहाँ से लाओगे ?
मैं उन मनुष्यों की बात कर रही हूं जो राक्षस या रावण न होते हुए भी जिनमें राक्षस प्रवृत्ति या रावण प्रवृत्ति विद्यमान है। और जो न जाने कितनी सीताओं का मान-सम्मान तार-तार कर चुके हैं या कर रहे हैं जबकि वे मनुष्य की संतान हैं किसी राक्षसी मां की नहीं।

कहते हैं अंग्रेज चले गए मगर हममे अंग्रेजी छोड़ गए।
मगर यह तो कुछ ही सालों की बात है या इसी युग की बात है। और फिर सुना है राक्षस तो न जाने कितने युग पूर्व पाताल चले गए या फिर वहीं पर निवास करते हैं। फिर हम क्यूँ आज उस राक्षस प्रवृत्ति का अनुसरण करते हैं ? क्या वह भी हमें विरासत में अपनी राक्षस प्रवृत्ति दे गए ? विचारणीय है ये !

उस रावण ने तो सीता को छुआ तक नहीं था जिसको आज भी हम जलाते हैं। जो यह संदेश देता है कि किसी भी स्त्री के लिए दूर विचार या बुरी नजर से देखने मात्र का यह परिणाम होता है। हर स्त्री, किसी की मां, बहू , बेटी या बहन सबके लिए सीता मां के समान है और सम्मान की अधिकारी है।

और फिर हमारी हिंदू देव संस्कृति भी यही कहती है यथा – “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता“।

अगर उस रावण को जलता देख मन उत्सुक होता है तो अपने अंदर उस रावण का दहन क्यों नहीं करते जो रावण से भी ज्यादा दुराचारी है। यहां हर घर में राम ही की तो पूजा होती है किसी भी घर में रावण की पूजा तो नहीं होती। तो फिर राम अनुसरण कर्ता या हनुमान की तरह हर स्त्री को सीता मां न मानकर अनुसरण करने वाले क्यों जन्म नहीं लेते ? क्यों रावण अनुसरण कर्ता ही कहां जन्म ले रहे हैं ?

श्री राम ने जब रावण के सर काटे तो वह मरा नहीं सर कटने के बाद भी पुनः सर सजीव हो जाता। तब विभीषण के कहने पर उन्होंने रावण की नाभि पर प्रहार किया तब जाकर उसका अंत हुआ । इसी भाँति इन रावण को मारने के लिए इनके एक या दो चेहरे काटने या अलग करने से कुछ नहीं होगा । ये भी पुनः सजीव हो उठेंगे एक नए रूप में, अतः हमें भी इनकी नाभि पर वार करना होगा। अतः प्रण करें कि इस बार रावण दहन अवश्य देखने जायेंगे और जब जाएं तो उस रावण दहन के साथ अपने अंदर के रावण का भी दहन करके घर लौटे, यही सच्चे अर्थों में विजयादशमी होगी । न केवल 1 राम के लिए न केवल एक सीता के लिए बल्कि हम सब के लिए।

अपने बच्चों को भी उस रावण वध या दहन का सही अर्थ व इससे मिलती शिक्षा के बारे में बतलायें ताकि उनमें भी कहीं न कहीं राम जीवित रहे रावण नहीं।
आपका यह प्रण ना जाने कितनी सीता को बचाएगा, न जाने कितने राम को अवतरित करेगा व यह उन हजारों निर्भया, आसिफा, गीता व छुटकी जैसी सीता को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जिन्हें कोई राम बचाने तो नहीं आया परंतु रावण से भी बद्त्तर मनुष्य की वजह से अपनी कराहती चीखों व मरती आत्मा के स्वरों के साथ प्राणों को त्याग गई व संसार को छोड़ गई जो आज भी गुंज रही है की कहीं तो कोई या किसी में तो राम जागे। जिन्हें सुनकर न जाने कितनी सीताओं की आत्मा या रूह तक कांप जाती है व डर सहमकर जो कहीं घर में ही गुमसुम होने को मजबूर हैं।

यह प्रण लें की इस बारी रावण दहन देखने जरूर जाएं व अपने परिवार के साथ जाएं, अपने बच्चों को उस रावण से बचाएं। उनमें कहीं न कहीं राम जिंदा रख पाए तथा अपनी सीताओं को भी सुरक्षित जीवन दे पाए। ताकि कोई भी सीता निर्भया, आसिफा व छुटकी ना बन पाए।

सच्चे अर्थों में रावण जलायें व विजयादशमी मनायें।

अन्त में –

” चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा बच्चा-बच्चा राम है। ”

लेखिका:
अंकिता राजपुरोहित