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प्रदुषण – हिंदी कविता

मैं धर्मानुयायी, मेरा धर्म और मैं ही मेरे धर्म का रखवाला यहाँ पर हज और वहाँपर कुंभ…का मेला, मज्जिद, मंदिर और गिरीजाघरों…में अल्हाह, भगवान और ईसा-मसिह…का लाला ।। हिंदु, मुस्लिम, शिख, और ईसाई.. इन मस्त-मौलाओं की अपनी ही ईद-दिवाली ।। गणपती-अंबे के नाम टेपरेकार्डर ईद-मोहरम-क्रिसमस पर लाऊड़स्पिकर और शिवाजी-बाबा साहब के लिए बासरी वादन

कॉरपोरेट – हिंदी कविता

बड़ा हो या खुर्दा व्यापारी खटमल जैसा है। आदमी का खून चूँसना दोनो का समान धर्म है ।। कुच लोग ज्यादा वेतन लेकर कम लोग अधिक काम करकर गधे जैसा आदमी आखाड़े का पहलवान है ।। और सोने के भाव मिट्टी-बेचकर टैक्स चोरी के बाईपास बनाकर मल्या-मोदी जैसे पाकिटमारों की परदेस में, हाथ-सफाई की