चैत्र नवरात्रि – Chaitra Navratri Pooja 28 March to 4 April 2017 नवरात्रि की स्वतः विधिवत पूजा अर्चना
नवरात्रि पूजा का हिन्दू धर्म में खास स्थान है और यह भारत के विभिन्न भागों में अलग अलग ढंग से मनाई जाती है। पूजा पाठ एवं अध्यात्म से जुड़े इस हिन्दू पर्व की शोभा देखते ही बनती है। गुजरात में इस त्यौहार को बड़े आनंद रूप से मनाया जाता है जिसमें जिसमें हिन्दू युवक और युवतियाँ गरबा नृत्य करते हैं। आस्था का यह पर्व भारत के सभी राज्यों में अति उल्लास के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है जिसका मतलब है “नौ रातें”; इस पर्व के अनुसार में देवी के नौ अलग अलग रूपों की पूजा की जाती है। लगातार नौ दिन और नौ रात तक चलने वाली इस पूजा में देवीमाँ के नौ रूपों को श्रद्धा भाव से पूजा जाता है।
क्या है दुर्गा का अर्थ ?
ये कथन है कि माँ दुर्गा मनुष्य के जीवन में व्याप्त सभी दुःखों का सदा के लिये अंत कर देतीं हैं। इसी के तहत दुर्गा का अर्थ होता है ” दुःखों को हरने वाली ”
कुछ विशेष बिंदु :
– नवरात्रि नौ दिन और नौ रातों का एक धार्मिक पर्व है।
– नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा होती है।
– नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र,आषाढ,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है।
– नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों – महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।
जानिये पूजी जानें वाली नौ देवियों के नाम :
माँ शैलपुत्री : इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।
माँ ब्रह्मचारिणी : इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।
माँ चंद्रघंटा : इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।
माँ कूष्माण्डा : इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।
माँ स्कंदमाता : इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।
माँ कात्यायनी : इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।
माँ कालरात्रि : इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।
माँ महागौरी : इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।
माँ सिद्धिदात्री : इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।
इस वर्ष चैत्र नवरात्रि कि तिथियाँ :
प्रथम नौरात्रि : 28 मार्च 2017 , प्रथमा तिथि – दिन मंगलवार।
द्वितीय नौरात्रि : 29 मार्च 2017 , द्वितीया तिथि – दिन बुधवार।
तृतीय नौरात्रि : 30 मार्च 2017 , तृतीया तिथि – दिन बृहस्पतिवार।
चतुर्थ नौरात्रि : 31 मार्च 2017 , चतुर्थी तिथि – दिन शुक्रवार।
पंचम नौरात्रि : 1 अप्रैल 2017 , पंचमी तिथि – दिन शनिवार।
षष्ठम नौरात्रि : 2 अप्रैल 2017 , षष्टी तिथि – दिन रविवार।
सप्तम नौरात्रि : 3 अप्रैल 2017 , सप्तमी तिथि – दिन सोमवार।
अष्ठम नौरात्रि : 4 अप्रैल 2017 , अष्ठमी तिथि – दिन मंगलवार।
नवम नौरात्रि : 5 अप्रैल 2017 , नवमी तिथि – दिन बुद्धवार।
पूजा सामग्री :
>> माँ देवी की मूर्ती या उनका चित्र (जिन्हें आप पूजते हों)
>> कलश – मिट्टी का पात्र है जिसमें जौ बोने के लिये इस्तेमाल किया जाता है।
>> शुद्ध मिट्टी – इस मिट्टी को कलश में डाला जाता है जिसमें जौ उग सके।
>> 2 प्रकार के कलश की अनिवार्यता – एक पूजा कलश और दूसरा शांति कलश।
>> अन्य अनिवार्यता : गंगाजल, मौली, इत्र, साबुत सुपारी, साथ प्रकार के अनाज, आम के 5 पत्ते, कलश ढकने के लिए मिट्टी का दीया, कलश ढक्कन में रखने के लिये बिना टूटे चावल के दाने, धूप, दीप, मिठाई, फल, लाल रंग का अक्षत, दूध, दही, घी, शहद, फूल, अगरबत्ती, देवी के लिए वस्त्र, एक सम्पूर्ण नारियल, रोली इत्यादि (पंडित के आदेशानुसार).
कलश स्थापन विधि :
प्रातः स्नान के उपरांत सम्पूर्ण पूजन सामग्री के साथ अपने पूजा स्थल पर पूर्व की ओर मुँह करके (पूर्वाभिमुख) आसान लगा कर बैठें।
घट स्थापना का समय (मुहूर्त) : सुबह 08:26 से 10:23
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ : प्रातः 08:26, 28 मार्च 2017
प्रतिपदा तिथि समाप्त : प्रातः 05:44, 29 मार्च 2017
बिना पण्डित की सहायता के कैसे करें पूजा :
- नीचे दिये हुये मंत्र का उच्चारण करें अथवा पूजन सामग्री और अपने ऊपर जल छिड़कें :
” ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपी वा
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाहान्तर: शुचि: ”
- अब इसके उपरांत अपनी दोनों हथेली में में अछत, फूल और जल लेकर पूजा का संकल्प करें।
माता “शैलपुत्री” की मूर्ती के सम्मुख दोनों कलश मिट्टी के ऊपर रखकर अपनें हाथ में अक्षत, फूल, और गंगाजल लेकर “वरूण देव” का आवाहन करें। बाएं भाग वाला कलश जो कि “शांति कलश” होगा। इसी कलश में सर्वऔषधी, पंचरत्न का त्याग करें । दोनों कलश के नीचे रखी हुई मिट्टी में ‘सप्तधान्य’ और ‘सप्तमृतिका’ को मिलाएं। आम के पत्तों को दूसरे कलश में डालें। इसी कलश के ऊपर एक पात्र में अनाज को भरकर उसके ऊपर एक दीप जलायें । शांति कलश में ‘पंचपल्लव’ डालकर उसके ऊपर पानी वाला पूरा नारियल रखकर लाल वस्त्र से लपेट दें। अब दोनों कलशों के मध्य में जौ रोप दें।
- अब नीचे दिये गये मंत्र को पढ़ते हुये सच्चे मन से देवी का धयान करें ।
” खडगं चक्र गदेषु चाप परिघांछूलं भुशुण्डीं शिर:।
शंखं सन्दधतीं करैस्त्रि नयनां सर्वांग भूषावृताम।।
नीलाश्म द्युतिमास्य पाद दशकां सेवे महाकालिकाम।
यामस्तीत स्वपिते हरो कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम॥ “
- इसके बाद बारी-बारी से पूजन कि सामग्री, अक्षत, धूप, दीप नैवेध और वस्त्र के साथ विधिवत पूजा अर्चना करें।
- सम्पूर्ण रूप से पूजन के बाद अंत में माँ कि आरती करें और प्रसाद का वितरण करें।