मकरसंक्रांति क्या है – क्यों मानते हैं मकर संक्रान्ति, महत्त्व और विशेषता

इस बार वर्ष 2019 की यह मकरसंक्रांति बेहद महत्त्वपूर्ण है। जिसकी खास वजह है प्रयागराज में आयोजित होने वाला अर्धकुम्भ। यूँ तो प्रतिवर्ष भारत के तमाम राज्यों व हिस्सों में Makar Sankranti मनाई जाती है किन्तु कुंभ में मकरसंक्रांति के दिन स्नान करने से इसकी विशेषता अत्यधिक गहरा जाती है। ऐसे में Prayag Raj का यह ardhkumbh mela मकर संक्रांति की मान्यता के लिहाज से ज्यादा फलदायी है।

क्या है मकरसंक्रांति:

संक्रांति का यह पर्व हिन्दू धर्म को मानाने वाले लोगों द्वारा मनाया जाता है। मकरसंक्राति पर्व भारत के लगभग सभी हिस्सों में होता है पर उत्तर भारत में इसकी अहमियत ज्यादा है। इतना ही नहीं इसे अनेक नामों से भी जाना जाता है।

मकर संक्रांति स्नान - Makar Sankranti Snan क्या है

कहा जाता है की – “पौष मास में जब सूर्य, मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है।” यह त्यौहार विशेषकर जनवरी माह के चौदहवें या फिर पन्द्रहवें दिन को ही पड़ता है। इस एक दिन का अंतर भी लौंद मास के 366 दिन का हो जाने से आता है। इस दिन सूर्य, धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है जिसका जातक शनि है।

मकरसंक्रांति पूरे भारतवर्ष के अलावा नेपाल में भी बड़ी धार्मिकता के साथ मनाई जाती है। यह पर्व भारत नेपाल के अलावा अन्य देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है परन्तु वहां इसके नाम अलग होते हैं।

मकर संक्रांति को कहाँ क्या बोलते हैं –

विशेषतः पूरे भारत में ही इसे ‘मकर संक्रांति’ नाम दिया गया है और ज्यादातर इसी नाम को कहने का चलन भी है मगर फिर भी कुछ अन्य नाम सुनने को मिलते हैं जैसे –

तमिलनाडु में इसे – ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल कहते हैं।
गुजरात और उत्तराखण्ड में इसे – उत्तरायण कहते हैं।
हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में इसे – माघी कहते हैं।
असम में इसे – भोगाली बिहु कहते हैं।
कश्मीर घाटी में इसे – शिशुर सेंक्रात कहते हैं।
उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में इसे – खिचड़ी कहते हैं।
पश्चिम बंगाल में इसे – पौष संक्रान्ति कहते हैं।
कर्नाटक में इसे – मकर संक्रमण कहते हैं।

क्यों है मकर संक्रान्ति का महत्तव ?

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, देवताओं की रात्रि को दक्षिणायण कहते हैं जो नकारात्मकता का प्रतीक है। वहीं दूसरी ओर देवताओं के दिन को उत्तरायण कहते हैं जो सकारात्मकता का प्रतीक है। मकर संक्रान्ति को कई जगहों पर देवताओं के दिन को अर्थात उत्तरायण से जोड़ा जाता है। हालांकि हिन्दू शास्त्रियों द्वारा उत्तरायण की व्याख्या अलग है और वे उसे मकर संक्रान्ति से जोड़कर नहीं देखते। उनके अनुसार सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ही मकर संक्रांति का कारण है।

मुख्यतः सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं,
किन्तु सूर्य का कर्क व मकर राशियों में प्रवेश करना धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यन्त फलदायी व लाभदायी है।
हम जानते हैं की हमारा देश भारत, उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। अतः मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में स्थित होता है, यानी भारत से उसकी दूरी ज्यादा होती है। इस वजह से भारत में सर्दी का मौसम आता है और दिन छोटे व रातें बड़ी होने लगती हैं।
मकर संक्रांति वाले दिन से सूर्य उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करने लगता है। जिसके कारण भारत में गर्मियों का मौसम आरंभ होना शुरू होता है और दिन बड़े व रातें छोटी होने लगती हैं।

दिन बड़ा होने से भारत में सूर्य का प्रकाश अधिक समय तक विद्द्मान रहता है। अतः मकर संक्रांति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला पर्व भी कहा जाता है। मकरसंक्रांति पर सूर्य की राशि में आये बदलाव को अंधकार से प्रकाश की दिशा में अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश के अधिक होने से मनुष्य व अन्य प्राणियों तथा जीवों की कार्य चेतना में वृद्धि होती है। स्नान, पूजा-पाठ, आराधना, अनुष्ठान, धर्म-पुण्य, दान जैसे क्रियाकलापों को करके सूर्य के प्रति अपनी कृतज्ञता को दर्शाया जाता है। धार्मिक दृष्टि से मकर संक्रांति का इतना महत्त्व होने का कारण यही है।

  • ऐसी धारणा मानी जाती है कि मकरसंक्रांति के दिन किया गया दान सौ गुना ज्यादा बढ़कर पुनः प्राप्त होता है।
  • मान्यता यह भी है की इस दिन भगवान भाष्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं।
  • महाभारत काल में हुए युद्ध के दौरान पितामः भीष्म ने अपने शरीर को त्यागने के लिए मकर संक्रांति का दिन ही चुना था।

जहाँ तक खाने का रिवाज है तो –
मकर संक्रांति के दिन भारत के कई हिस्सों में निम्न प्रकार का भोजन ग्रहण किया जाता है:
बिहार व उत्तर प्रदेश के पूर्वांचलीय हिस्सों में – चूड़ा के साथ दही, चूड़ा के साथ दूध, चूड़ा गुड़ और दही सब्जी प्रमुख भोजन है।
महाराष्ट्र व बंगाल में – तिल के बने लड्डू और हलवा खाने का चलन है।
तमिलनाडु में – इस दिन मिट्टी के पात्र में खीर बनाकर खाने का चलन है।

इस दिन देश के सभी राज्यों का खान पान लगभग एक जैसा ही देखने को मिलता है। पौष मास में सूर्य के मकर राशि में आने पर मकर संक्रांति मनाई जाती है जिसकी तमाम विशेषता, महत्ता, धार्मिकता, रीति रिवाज और इतिहास को हमने पखेरू पर जाना। उम्मीद है आप पढ़कर मकर संक्रांति को और अच्छी तरह समझ पाए होंगे। संक्रांति का यह पावन पर्व हम सभी और धरा पर उपस्थित अन्य सभी जीवों के लिए शुभ रहे।

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा