सत्यनिष्ठ होना ही मानवीय होना है

सत्यनिष्ठा एक अनुपम मानवीय गुण है। मनुष्य के जीवन में सत्यनिष्ठा का बहुत ही महत्व है। यदि हमारी जीवन रूपी इमारत सत्यनिष्ठ रूपी नींव पर खड़ी होगी तभी हम अपनी सफलता की उचाईयों को छू सकेंगें और सत्यनिष्ठा अर्थात मानवता के गुण स्वयं में विकसित हो सकेंगे।

सत्यनिष्ठ बनने के लिए गुण हमे बचपन से ही अपने घर विद्यालय तथा समाज से मिलते रहते है। यह प्रारंभिक बातें जैसे-सदा सत्य बोलो! हिंसा मत करो! ईमानदार बनो! आदि ,परंतु इतना जान लेना पर्याप्त नहीं है आवश्यक है की हम यह जाने की हम अपने जीवन में इसे किस तरह उपयोग में लाए जिससे हम सच्चे अर्थो में सत्यनिष्ठ बन सकें।

सत्यनिष्ठ होने का अर्थ मात्र यह नहीँ की आप सत्य बोलते हैं,वरन् यह तो सत्यनिष्ठ का संक्षिप्त रूप है। सत्य बोलते समय यह जरूर देखना चाहिए की वह सत्य किसी निर्दोष के लिए घातक सिद्ध न हो । यदि किसी निर्दोष के प्राण हमारे एक झूठ से बच सकते हैं तो वह झूठ सौ सच के बराबर है। सत्य बोलना चाहिए परंतु किस प्रकार से बोलना चाहिए यह सूक्ति हमे इसका ज्ञान देती है –

सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्,न ब्रूयात् सत्यम प्रियम्।
 
सत्यनिष्ठ व्यक्ति सदा इस बात का ध्यान रखता है की उसमे मानवता हमेशा बनी रहे। सत्यनिष्ठा आज मनुष्य से दूर होती जा रही है। आज का मानव अपने स्वार्थ में इस प्रकार अंधा हो गया है की उसे मानव जीवन की कीमत का भान ही नहीँ रहा है। स्वार्थ के वशीभूत मानव कुछ भी करने को तैयार है।

यह कहते हुए लज्जा का अनुभव होता है की सत्यनिष्ठा के आभाव में आज मनुष्य पशुवत आचरण करने लगा है। आज मनुष्य को आधुनिकता के अंधानुकरण ने मानव से पशु बना दिया है। स्वार्थ इतना अधिक है की सत्यनिष्ठा तथा मानवीय होना स्वप्नवत दिखाई देता है ।

मानव वही है जो एक दूसरे के काम आये। ऐसे व्यक्तियों का जीवन सफल माना जाता है जो परहित में लगे रहते है। यही हमारा सबसे बड़ा धर्म भी है।

मानस में गोस्वामी जी कहते हैं –
परहित सरिस धर्म नही भाई, पर पीड़ा सम नही अधमाई।
एक सत्यनिष्ठ व्यक्ति के गुणों में परोपकार का बहुत महत्व है। यह गुण तो हमे प्रकृति ही सिखाती है।

परोपकाराय फलन्ति वृक्षः,
परोपकाराय वहन्ति नधयः।
परोपकाराय दुहन्ति गावः,
परोपकाराय इदं शरीरम्।

परोपकार का गुण ही हमे सत्यनिष्ठ और मानवीय बनाता है। आज के इस दौर में स्वार्थ ही धर्म और ईमान बन कर रह गया है। आइये कोशिश करें पुनः मानवीय बनने की..आइये कोशिश करें सत्यनिष्ठ बनने की…।

 
लेखिका:
शाम्भवी मिश्रा