गांव का मेला – हास्य व्यंग

प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के बाद, भारत देश के कई राज्यों में मेले का आयोजन होता आया है। अधिकांशतः ये मेले दूर दराज गांव में लगते देखे जाते हैं। चूँकि मेलों का आयोजन ग्रामीण व छोटे शहरी इलाकों में ही होता है अतः उसमें विचरण करने वाले लोगों की संख्या ज्यादातर ग्रामीणों की ही होती है।

लाल, हरी, नीली, पीली चटकार रंग की साड़ी पहने महिलाएं!
जिनकी गोद में बैठा ‘चिंटू’ नाक बहाते हुए और पैदल चलते ‘पिंटू’ को महिलाएं घसीटकर आगे बढ़ती जा रही हैं..!
उसी में से किसी ने नज़र दौड़ाई !!
ए गुड्डू…कहाँ हवो…अरे इहां है तोहार गुड्डू।
आजी के हाथ पकड़ी लो !! कहूं खो न जाये !

मेले के दोनों किनारों पर पोल पर बंधे ‘लाउड स्पीकर’ से आवाज़ आती है –

  • एक लड़की…एक लड़की खो गयी है !
    जिसकी उम्र 8 वर्ष है , रंग गेहुआं , लाल रंग का फ्रॉक पहने हुए है और अपने बाप का नाम ‘दीनानाथ’ बता रही है।
    जिस किसी भाई बंधू की हो कृपया मेला स्थित खोया पाया विभाग से ले जाएं।
  • ध्यान दीजिये – ‘बंटी’ भैया जहाँ कहीं भी हों कृपया मेला स्थित पुलिस चौकी पहुँच जाएं वहां उनका इंतज़ार ‘बबली’ भौजी कर रही हैं।

मेले में विचरण करते बुजुर्गगण धोती कुर्ता और खोपड़ी पे पगड़ी या गमछा डाले चहलकदमी कर रहे हैं।
वे मेले से खुश नहीं हैं उनका ये मानना है की – ये भला कोई मेला है।
…का हो पारस…मेला तो अपने जनामे में होता था !
ऊ राती-राती भर मेला देखें लोग , अजब गजब समान आवे , सामाजिक लोग आवें।
अब देखो सारे आवारा मवाली यहीं घूम रहे।
…ओह काका।। हटीजा वा देखो सांड घुस गया है मेला में..मार न दे केहू के।
काका खिसियाके – सब पुलिस वालन के कारनामा है 100 रूपया लेके सांडो घुसा दिया।

ज्यों-ज्यों कदम आगे बढ़ते मेले का नज़ारा और भी गहरा होता जाता।
नाना प्रकार की दुकानें , खाने के सामान , खिलौने , चूड़ियां , बर्तन , चाट , गोलगप्पे इत्यादि के अलावा वो दुकानें जहां आप और हम भी एक बार जरूर गए होंगे। आज ‘प्रभावती देवी’ का पोता भी ज़िद करते हुए…आजी हम भी निशाना लगाउब !!
लाल ग़ुलाबी छोटे-छोटे लटके गुब्बारे पर पोता बंदूख से निशाना लगाता है पर गुब्बारा नहीं फूटता !
पोते ने कई प्रयास किये पर एक भी गुब्बारा नहीं फूटा…..आजी गुस्से में !!
!! अरे चला , बाड़ा निशानेबाज बना हो। एको लगा नहीं !!
…अरे आजी पैसा तो देदो (दुकानदार बोला)…रुको आजी !!!
काहे पैसा देई..? जब एको लगा नहीं तो पैसा कौन चीज के।

मेले में कुछ दूर आगे निकलते ही –
आ गया…आ गया, आपके शहर में पहली बार “रूप की रानी और चोरों का राजा” जी हाँ !!
आईये..आईये और देखिये दिल थामकर – “रूप की रानी और चोरों का राजा” ! टिकट मात्र 10 रुपया..10 रुपया।
मेले के इस खास क्षेत्र में गांव-मोहल्ले के घोसित तमाम ‘आशिक़ आवारागण’ अथवा नाना प्रकार रूप बनाये ‘मजनूगण’ उपस्थित हैं।
…सुन बे राजू !!..!
जब तक ‘सरितवा’ अउर ‘पिंकिया’ दूनो नहीं आ रही है तब तक “रूप की रानी और चोरों का राजा” निपटा दिया जाय।
पोस्टर तो बड़ा जानदार लगाया है अंदर माल भी अच्छा होगा।
इसी विचार के साथ दोनों सामाजिक लखैरे अंदर घुस जाते हैं !
…अबे अबे..राजेश , मुँह ढक…मुँह ढक !! उ देख तोहार मौसा जी !
ई मौसा यहाँ कहाँ बैठे हैं ! घरे मौसी को बोले की कचहरी जाय रहे हैं अउर इहां “रूप की रानी और चोरों का राजा” देख रहे!
पक्का पोस्टर देख के ईहो घुसे होंगे…साला अंदर घंटा कुछ नहीं है बे !!
मौसवा तो पूरा रसिक मिजाज निकला…।

दिल्ली की चाट…दिल्ली की चाट ! खाइये और घर लेजाइये मशहूर दिल्ली की चाट।
अरे जयराम, हमको दिल्ली में 18 साल हो गया। आज तक हमको नहीं पता चला की दिल्ली की चाट मशहूर है !
अरे जीजा छोड़ो, हम इसको जानते है। गांव का ‘भोलवा’ है; रेलवे स्टेशन पर चाट का ठेला लगाता है।
वहां लिखे रहता है मशहूर बंबई की चाट !!! इसके फेरे में न पड़ो खाली बुरबक बनाता है जनता को।

विश्व के महान जादूगर !…जादूगर ‘गोगा’ आएं हैं आपके शहर में पहली बार।
हैरतअंगेज़ कारनामे जो आपने पहले कभी नहीं देखे होंगे सिर्फ 20 रुपये में…
दखिये – हवा में उड़ती हुयी लड़की…बिना सिर वाला हाथी जो पलभर में गायब हो जाता है।
…जादूगर गोगा…..जादूगर गोगा..!!

गणेश प्रजापति जहाँ कहीं भी हों..गणेश प्रजापति।।।
कृपा करके ‘जैमिनी सरकस’ के पास पहुँच जाएँ।
वहां उनका इंतजार ‘दुलारी देवी’ कर रही हैं…गणेश प्रजापति!!

एक लड़की खो गयी है जिसकी उम्र 6 वर्ष है !
पाँव में नीले रंग का चप्पल और हाथ में सफ़ेद ‘भोला पान भण्डार’ का झोला लिए है।
अपना नाम ‘रिंकी’ , माँ का नाम ‘शर्मीला’ और पिता का नाम नहीं जाती है !!!
…अरे अरे !! का अनाउंस कर रहे हैं आप। (लड़की के पास खड़े व्यक्ति ने कहा)!!
ई हमार बिटिया है…खोई थोड़ी है यह तो हमरे साथ खड़ी है।
अरे…तो दूर हट के खड़े हो हम सोचे खो गयी है (अनाउंसर ने बोला)!
बिटिया जरा हमारा नाम बताओ तो (लड़की के पिता ने पूछा)!!
रमेश कुमार (लड़की का जवाब)…!
का हो अनाउंसर साहब !!
का अनाब-शनाब बक रहे हो ?…बाप का नाम नहीं जाती है !!
अउर हमरी मेहरारू तो मेला देखे आयी नहीं…उसका नाम तुम शर्मीला बता रहे हो।
ठीक काम नहीं है ये…!!…तू तू…मैं मैं के साथ अरे जाओ निकलो यहाँ से।

मौत का कुआं…देखिये।
लड़की को जिन्दा सांप खाते देखिये।
लीजिये चूड़ियां..फैंसी कपड़े।
देखिये नाग और नागिन जोड़े एक साथ।
चाभी के छल्लों पर अपना नाम लिखवाइये…
भीड़ में से एक मजनू …ए भाई सुनो!!!
लिखो ‘डिंपल आई लव यू’।
बंगाल के रसगुल्ले..आगरा के पेठे।
—-मेला समाप्त !!!!

जीवन का आनंद केवल – इंटरनेट , महंगे मोबाइल फ़ोन , सिनेमा हॉल इत्यादि में नहीं है।
गांव के ये साधारण से जान पड़ने वाले मेले , वहां उड़ती धूल , रंग बिरंगे अजूबे और उनका शोर हमें आनंदित होने का पूर्ण अवसर प्रदान करते हैं।

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा