चले जाएंगे – हिंदी कविता

चले जाएंगे - हिंदी कविता

अखिर वादे करके चले जाएंगे
अब नहीं लौट के आएँगे।
चले जाएंगे…

छोटी सी तकरार कर चले जाएंगे
मेरे ऊपर ‘बईमान’ का दाग लगा।
चले जाएंगे…

सांस के साथ सांस लेने वाले चले जाएंगे
‘संदीप’ रोग हिज्र का लगा।
चले जाएंगे…

छोड़ सात समुद्र से पार चले जाएंगे
मेरे ‘पर’ काट, जख्मी कर।
चले जाएंगे…

मेरे पिछे से वार कर चले जाएंगे
ना लोटने का वादा कर।
चले जाएंगे…

मेरे पीछे मत आना, यह ‘कह’ चले जाएंगे
चारों तरफ से रास्ते बंद कर।
चले जाएंगे…

जान मेरी से जान निकल, चले जाएंगे
शहद सा मिठा मैं, कड़वा कर।
चले जाएंगे…

मैं मतलबी हूं, ये समझा, चले जाएंगे
मेरी हड्डियों को पिघला।
चले जाएंगे…

मुझे अधजला हुआ छोड़, चले जाएंगे
अपना बना, पराया कर।
चले जाएंगे…

सच्चा ‘संत’ कहे – कोई किसी का इंतजार न करे।
चले जाएंगे…चले जाएंगे…!!

लेखक:
संदीप नर