‘हर राष्ट्र का नमन’ – हिंदी कविता

कविता शीर्षक – “हर राष्ट्र का नमन”

हम युद्ध नहीं अमन चाहें
हरे राष्ट्र का नमन चाहें
चाहे रहें यहाँ चाहे रहें वहाँ
चाहे विश्वशांति नहीं जंग चाहें

अमन के दुश्मन हो जाओ तैयार
आके गले मिलो फेंको हथियार
बहे प्रेम रूपी सुधा की धार
खुशियों की हो सदा बौछार

क्या रखा है खून खराबे में
ना आओ किसी के बहकावे में
खुद जियो और सब को जीने दो
तो आएगा आनंद फिर जीने में

क्यों दिल को किया है इतना सख्त
क्या मिलेगा बहाकर अपनों का रक्त
पाना है आखिर कौन सा तख्त
तुम भी तो हो किसी मां के भक्त

क्या लेकर आए जो खोना है
अंत समय हाथ खुला रह जाना है
अपने कर्मों के हिस्से से
बस नाम यहाँ रह जाना है

किस बात की रंजिश और तकरार
जवाब देना होगा उसके दरबार
फेंको बंदूक तुम फेंको कटार
पहनो आकर मित्रता का हार

हम तो आपस में हैं भाई बहन
चलो आज खाते हैं एक कसम
ना उठाएंगे कटार न कोई गन
दुनिया में होने देंगे ना जंग

रीना कुमारी
तुपुदाना रांची झारखंडं

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