हिंदी कविता – नीयत

नीयत – कविता

तू देखे मैं देखूं ,
प्रत्येक को एकसा देखूं ,
तू सोचें मैं सोचूँ ।
सबके साथ प्यार चाहूँ ।

सोच करूँ, विचार करूँ ,
क्या लेना मैंनें किसी की ज़िंदगी से ,
अगर तू बताना चहता है ,
अपनी ज़िंदगी के बारे में ,
फिर मैं ज़रूर तुम्हारे मसले का ,
सलाहकार बनूँ ।

हर घर की कहानी अलग है ,
तुम्हे क्या पता किसी की जिन्दगी बारे ,
तेरी अपनी निजी ज़िंदगी है ,
जो करें तू सो आप करे ,
क्यों बिन सोचे समझे ,
कोई दखलअन्दाज़ी करता है ।

ईश्वर ने हमें सोच दी ,
इसका तो इस्तमाल करूँ ।
क्यों दूसरे के साथ, मुकाबले करता है ,
करके देख अपने साथ मुकाबला ,
हो सकता है जीत हो जाये ,
फेल होने से क्यों डरता है ।
बराबर वाले के साथ, मुक्कबाला करके देख कभी ,
क्यों ऊँचा निचा पैर धरता है ।

सोच के बताना कभी उसके बारे में ,
जिसने जीत के भी बाजी हार ली ,
मोहब्बत में जिसको ऐसी मार पड़ी ,
तड़फ उसकी है मेरे दिल में रहती ,
जब झूठे वादे कर, छोड़ पार गई ।

लिखना सन्दीप का शौक है ,
जे लिखा कुछ न अच्छे लगे, समझ कर छोड़ ,
न लेना ए मेरे दोस्त, मेरी दिल की धड़कन से रास्ता तोड़ ,
विरोध भी होनी ज़रूरी है, कई बार विरोधी हो ,
तभी होते है, जीत के झंडे खड़के जोड़ ।

कौन नहीं मतलबी यहाँ ,
मतलब के लिए हर शख्स ,
ईश्वर की जय जय करता है ।
है न तुम्हारे मेरे पास देने के लिए ईश्वर को कुछ ,
ईश्वर तो सिर्फ़ सच्चा प्यार ही स्वीकार करता है ,
यह तो है एक भावना, जो साफ़ नज़रिया बताता है ।

डालकर देख प्यार सब के साथ ,
क्यों गर्म आहें भरता है ।
क्या बन जाएगा अपनी ज़िंदगी ‘में’ कोई ,
क्यों व्यर्थ की चिंता करता हैं ,

‘नर’ छोड़ तू किसी को पढ़ना – पढ़ाना ,
जो तू पढ़ सकता उस से कहीं आगे से आगे ,
कोई ओर पढ़ सकता है ।
सरबव्यापी जानता तुम्हारे मन की, सरबव्यापी जानता मेरे मन
की ।

लेखक:
संदीप कुमार नर