रूठी क्यों हो मान भी जाओ – एक प्रेम गीत

रूठना और मनाना या फिर रूठे हुए को मनाना यह दोनों ही बातें रिश्तों के प्रेम भाव को दर्शाती हैं। रूठने-मनाने का यह खेल तो हमने दोस्तों के साथ, भाई बहन के साथ बहुत खेला है पर यही खेल खुछ अन्य रिश्तों का भी अहम पहलू है, क्योंकि रूठे को तभी मनाया जाता है जब उससे आप प्रेम करते हो। फिर वो प्रेम दोस्ती का हो सकता है , भाई बहन का हो सकता है या फिर प्रेमी और प्रेमिका का हो सकता है।

मेरी लिखी यह पंक्तियाँ प्रेमी प्रेमिका के प्रेम भाव को प्रकट करतीं हैं जिसमें रूठने मनाने का खेल एक आम बात है।

 

रूठी क्यों हो मान भी जाओ, इतना ना तुम मुझे सताओ !
मैं हूँ तुम्हारा सच्चा आशिक, अब जान मेरी करीब तो आओ !!

जीवन की हर साँस में तुम हो;
हर आस में तुम हर बात में तुम हो ;
कह दूँ तुमसे दिल की बातें;
बस एक बार जो तुम मुस्कुराओ !

इश्क़ किया है तुमसे मैंने;
दिल दिया है सिर्फ तुम्हीं को;
कर लो यकीं मेरी बात ओ जानम;
या फिर चीर के मेरा दिल ले जाओ !

मुझसे जुदा क्या तुम रह पाओगी;
खुद से पूछ यह बात बताओ;
दिन रात ख़यालों में आऊंगा मैं;
दूर होकर मुझसे एकबार दिखाओ !

रूठी क्यों हो मान भी जाओ, इतना ना तुम मुझे सताओ !
मैं हूँ तुम्हारा सच्चा आशिक, अब जान मेरी करीब तो आओ !!