मेरे जीवन का लक्ष्य – हिंदी निबंध

मेरे जीवन का लक्ष्य

मेरे जीवन का लक्ष्य ही क्यूँ अपितु किसी भी व्यक्ति के जीवन में लक्ष्य का होना बहुत जरूरी है। बिना लक्ष्य के ज़िन्दगी जीना ऐसा है, जैसे बिना पहिए के गाड़ी। जीवन लक्ष्य अर्थात Life Goal, लक्ष्य अंग्रेजी भाषा के शब्द Target से मेल खाता है जिसका अर्थ है हम अपने जीवन में क्या हासिल करना चाहते हैं। लक्ष्य का निर्धारण हम अपने मन एवं विचार में करते हैं किन्तु उसे हासिल करने के लिए हमें शारीरिक प्रयत्न करने पड़ते हैं। लक्ष्य के बिना मानव जीवन का विकास मुमकिन ही नहीं। अतः मेरे जीवन का भी एक लक्ष्य है जिसे मैं आज आप सबको बताना चाहती हूँ।

हर किसी के जीवन का कोई न कोई उद्देश्य जरूर होता है। हर इंसान अपने जीवन में कुछ न कुछ करना चाहता है। इसी प्रकार “ज़रनैन निसार” यानी मेरा भी एक सपना है, जो मेरे जीवन का सबसे बड़ा उद्देश है। जिसे मैं सालों से संजोते हुए चली आ रही हूं। चलिए मैं आपको अपने बचपन की तरफ ले चलती हूं।

स्कूल में मेरा पहला दिन है।

मेरे मन में जिस प्रकार की खुशी है वह मैं किसी से जाहिर नहीं कर सकती। नया बैग, नई किताबें, नया यूनिफॉर्म, नये जूते, यह सब मेरी खुशियों को दोगुना कर रहे हैं।

आज मेरे मन में किसी भी प्रकार का कोई सवाल नहीं है कि मैं स्कूल क्यों जा रही हूं ? क्या स्कूल जाने से मुझे कोई फायदा होगा ? या स्कूल जाने से मेरा कोई नुकसान न हो जाए ? मेरे मन में ऐसा कोई भी प्रश्न नहीं है। इस समय सिर्फ मैं और मेरी खुशियां ही थीं।

आज मैं 3 साल की हो गई हूं।

जब मैं स्कूल पहुंची तो वहां हर प्रकार के लोग मुझे मिले। मैं उन सभी से मिलकर बहुत खुश हुई और मेरे शिक्षक भी बहुत अच्छे थे। आज से मेरी पढ़ाई की शुरुआत हुई। धीरे-धीरे पढ़ाई मुझे इस प्रकार अच्छी लगने लगी कि मैंने उसी को अपने जीवन का आधार बना लिया और हर साल क्लास में प्रथम आने लगी। इस तरह मैंने 9वीं कक्षा तक अपनी पढ़ाई पूरी कर ली।

आज मैं 13 साल की हो गई हूं।

अब मैं हाई स्कूल में पहुंच गई हूं। जब मैं हाई स्कूल में गई तो सभी लोगों ने मुझे बहुत डराया और मुझे बहकाने की कोशिश की कि यह बोर्ड की परीक्षा है। इसमें कोई जल्दी पास नहीं होता। तुम फेल हो जाओगी और भी बहुत कुछ कहा। उन सभी की बातों ने पहले तो मुझे बहुत डराया, पर मैंने भी हार नहीं मानी और पूरे विश्वास के साथ खुद को परीक्षा के लिए तैयार कर लिया। मैंने मन लगाकर पढ़ाई की और परीक्षा दी।

जब मेरा रिजल्ट आया तो मैंने यह साबित कर दिया कि अगर मन से कोई काम करो तो सब मुमकिन हो जाता है। मैं अच्छे नंबरों से पास हो गई, उस समय मैं बहुत ही खुश थी कि मुझे एक नया क्लास मिल रहा है।

आज मैं 11वीं कक्षा में पहुंच गई।

मेरे अंदर पढ़ाई का एक नया जोश है। हाई स्कूल की परीक्षा देने के बाद मेरा ज्ञान, मेरा विश्वास पहले से और भी ज़्यादा बढ़ गया। हाई स्कूल की तरह मैंने 11वीं कक्षा भी अच्छे नंबरों से पास कर ली। जब मैंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत की थी तो मुझे यह नहीं पता था कि इसका परिणाम क्या होगा। मैं पढ़ती थी क्योंकि पढ़ना मुझे अच्छा लगता था।

अब मैं 12वीं कक्षा में हूं।

मेरे मन में जो एक अजीब सी भावना उत्पन्न हुई। वह शायद मेरे जीवन के लिए एक नया मोड़ था। क्योंकि वह भावना मेरे उद्देश्य से जुड़ी थी। उस समय मेरे मन में यह खयाल आया कि इस पढ़ाई को सही दिशा में ले जाने के लिए मेरा एक उद्देश्य तो होना ही चाहिए। मैं अपने भविष्य के बारे में सोचने लगी और हर प्रकार से सोचने के बाद मैंने यह फैसला किया कि मैं अध्यापिका बनूंगी। क्योंकि एक आदर्श अध्यापक के अंदर वह सारे अच्छे गुण होते हैं जो मैं अपने अंदर महसूस करती हूं।

मैं अध्यापिका इसलिए नहीं बनना चाहती हूं कि मुझे इससे बहुत सारा धन मिलेगा। बल्कि मैं अध्यापिका इसलिए बनना चाहती हूं क्योंकि इस कार्य में मुझे रूचि है। एक अध्यापिका बनकर मैं उन सभी बच्चों को शिक्षित करना चाहती हूं, जो असहाय और मजबूर हैं। जो निर्धनता के कारण रिक्शा और ट्राली चलाते हैं। जो बच्चे मजदूरी करते हैं, जो बच्चे निर्धनता के कारण अशिक्षित हैं। जो बच्चे विद्यालय जाकर पढ़ना तो चाहते हैं लेकिन निर्धनता के कारण केवल कुछ पैसों के लिए उन्हें अपनी पढ़ाई को छोड़ना पड़ जाता है और उनको इधर-उधर छोटे-मोटे कारखानों एवं चाय की दुकानों पर काम करना पड़ता है।

जब मैं इन्हें देखती हूं तो मेरा मन करुणा से भर जाता है और उनके भविष्य के लिए कुछ करने का खयाल मन में आता है। मैं उन सभी बच्चों को शिक्षित और उनकी सहायता करूं यह मेरे जीवन में अध्यापिका बनने का मुख्य उद्देश्य है।

इसके अतिरिक्त मेरे अध्यापिका बनने का कारण है। अपने देश से अज्ञानता और पुरानी घिसी पिटी रूढ़ीवादी परंपराओं जिससे हमारे देश को नुकसान पहुंचता है, उसे जड़ से उखाड़ फेंकना।

इसलिए कहा जाता है – “पढ़ेगा भारत, तभी तो बढ़ेगा भारत”

जब मैं अपने अध्यापकों को पढ़ाते हुए देखती हूं। तो मेरे मन में अध्यापिका बनने की इच्छा और भी अधिक बलवती होती जाती है। एक अध्यापक हमेशा अपने विद्यार्थियों को सच्चाई का रास्ता दिखाता है। वह चाहता है कि उसके विद्यार्थी जीवन में आगे बढ़ें। एक अध्यापक का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य होता है कि वह अपने विद्यार्थी को इस प्रकार का ज्ञान दे जो उसके जीवन और देश को उन्नति की ओर ले जाए।

जब एक कर्तव्यपरायण शिक्षक अपने विद्यार्थी को पढ़ाता है तो वह हर लालच से दूर रहता है। उस समय उसका कर्तव्य केवल अपने विद्यार्थी को ज्ञान देना होता है।

शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही बहुत अलग होते हैं। इनके बीच खून का रिश्ता नहीं होता।
फिर भी जब वह एक विद्यालय में प्रतिदिन साथ होते हैं तो उनके बीच ज्ञान का रिश्ता जुड़ जाता है। जो सारे रिश्तों से कई गुना मजबूत और पवित्र होता है। इसलिए तो कहा जाता है कि “शिक्षक विद्यार्थी के लिए एक मां की तरह होता है।”

आज मैं बी.ए. द्वितीय वर्ष की छात्रा हूं।

मैंने इंटरमीडिएट के बाद बी.ए. प्रथम वर्ष भी प्रथम श्रेणी में पास कर लिया। आज मैं खुश हूं कि जितनी मेहनत मैंने कि मुझे उसका फल मिला। जब मैं एक कक्षा उत्तीर्ण करके दूसरी कक्षा में जाती हूं। तो मुझे यह महसूस होता है कि मेरा लक्ष्य अब मुझसे ज्यादा दूर नहीं है। यदि मैं मेहनत और सच्चाई का रास्ता चुनूंगी तो मैं जरूर अपने जीवन में अपने लक्ष्य को पा सकूंगी। यही मेरे जीवन की कहानी और यही मेरा सपना भी है।

सारांश –

अगर आप अपने जीवन में खुश रहना चाहते हैं तो आपके जीवन में लक्ष्य का होना ज़रूरी है। अपने लक्ष्य के साथ जब आप अपनी सुबह की शुरुआत करेंगे तो आप अपने अंदर एक अलग सी ऊर्जा पाएंगे और आपको अपना जीवन अर्थपूर्ण लगने लगेगा।

इसके अलावा यदि किसी चीज को हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत की जाए और सच्चा प्रयास किया जाए तो वो चीज आपको एक दिन ज़रूर मिलती है। मनुष्य जीवन कर्म प्रधान है अतः जीवन में कर्म को ही अधिक महत्त्व देना चाहिए क्योंकि भाग्य तभी चमकता है जब हम अपने जीवन को कर्मपूर्ण बनाते हैं।

विशेष –

मेरे जीवन का लक्ष्य‘ यह कोई कथा नहीं अपितु मेरे जीवन का एक निबंध है जिसे मैंने अपने विचारों से गढ़ा। हां यह सच है कि मैं एक अध्यापिका बनना चाहती हूँ और यही मेरे जीवन का लक्ष्य है।

हर एक व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरुष सभी के जीवन में किसी न किसी लक्ष्य का होना अति आवश्यक है क्योंकि लक्ष्य हमें कर्म करने के लिए विवश करता है और फिर सार्थक दिशा में किया गया कर्म हमारे भाग्य को चमका कर हमें प्रकाशमय करता है। मेरे जैसे अनगिनत लोगों के जीवन का भी कोई न कोई लक्ष्य होगा, बेशक वे शायद अध्यापक या अध्यापिका न बनना चाहते हों किन्तु कोई न कोई लक्ष्य तो उन सभी ने भी निर्धारित किया होगा।

मेरे जीवन के लक्ष्य में मेरा एक ‘अध्यापिका’ होना अंत नहीं अपितु शुरुआत है जो मैं अपने समाज एवं देश को देना चाहती हूँ।

लेखिका:
ज़रनैन निसार