साइकिल चोर – हिंदी कहानी
साइकिल वाला आया और घर के मुख्य द्वारा पर साइकिल खड़ा कर चला गया। जाते हूए, मोहब्बत की अम्मा से यह कह गया की –
” मैं अभी मालिक से मिल कर आता हूँ, मेरे साइकिल का ध्यान रखना “
लगभग आधे घंटे तक एक शाख्स दरवाजे पर खड़ा होकर कहता –
अरे भाई अरे घर पर कोई है मेरी बात तो सुनो…
रूक जाओ आती हूँ, ” तुम लोगों की हिम्मत कैसे हूई मेरी साइकिल उठाने की, तुम्हारी दिवार के साथ मेरी साइकिल खड़ी है “
कौन सा साइकिल…
मोहब्बत की अम्मा आकर देखती है
हाँ, हाँ,
ये एक शाख्स खड़ा कर गया और जाने से पहले कहने लगा इस साईकल का ध्यान रखना …! मैं अभी आया…
हाँ, वह शाख्स, पास की दुकान में काम करता है।
तुम रूको … अभी …
मोहब्बत बेटा जा, जाकर … दुकान मालिक को कहना, मम्मी ने कहा है अंकल, दुकान बंद करोगे, तो मेरी मम्मी से मिलकर जाना।
(शाम का समय , सुरज डूबने से पहले)
मोटरसाईकल वाला रूकता है, साइकिल वाले से बात करता है साईकल वाला कहता है –
‘तुम्हारे जो काम करता है, मेरा चोरी, साइकिल उठा लाया है, उसने सारी बात बताई।
मैं दुकान पर आपने नव जुड़वा जन्में बच्चों की माँ के लिए मैडिकल स्टोर से दवाइयाँ ले रहा था, यह मेरा साइकिल उठा लाया।
गरीबी के कारण, मैं उसका ताला भी नहीं डलवा सका।
आप कहेंगे …क्या बात करता है।
(यह बात करते)
अचानक साइकिल वाला, चोर आता है, रूकता है।
“बच्चे की अम्मा, मैं साइकिल ले जा हूँ”।
(तभी साइकिल का असली मालिक तथा दुकानदार बाहर निकलते हैं साईकल वाला अभी जाने ही लागता है)
दुकानदार कालर से पकड़ कर कहता है –
तुम चोरी करते हो, तुम दूसरें का हक छीनते हो,
तुम्हें भगवान भी माफ नहीं करेगा।
यह साइकिल इस व्यक्ति का है, इसका असली हकदार यही है, तू ऐसे ही, मालिकाना हक जतता है, जा तुझे मैं आपनी, दुकान से निकालता हूँ।
साइकिल वाला, आँखे भरते हुआ कहता है –
हाँ, रात को सोने से पहले, एक बार जरूर सोचना।
जो सारा दिन तू चोरीयाँ करता है , क्या वह तेरे पूरे, जीवन गुजारने के लिए सही है।
लेखक:
संदीप कुमार नर
About Author

Sandeep Nar
मैं "संदीप कुमार नर" एम.ऐ थिएटर एंड टैलीविज़न। अपने राष्ट्र के लिए मिडिया जगत में रह कर कुछ अच्छा करना चाहता हूँ, अपनी मात्र भाषा पंजाबी के साथ अपनी राष्ट्रीय हिन्दी भाषा के लिए मै अपना योगदान - गजल लिखना, कहानियाँ एवं कविताएँ, गीत संगीत लिखना तथा गाना थिएटर के लिए कुछ करने की चाहत रखता हूँ, मनोरंजन जगत में जो मुझे लाभ होगा मैं समाज सेवा करना चहता हूँ यही मेरा लक्ष्य है । वो किस तरह की 'दारू' जो चढ़ी थी उतरी नही, मैं खुशबू देखकर पी गया। कुछ अरमान रोज मैं रख लू , संत कहते है चाहत नीच है।
Aapki kahani lajawaab hai ji.