प्रेम मरता नहीँ

शिवा जब मरने की बात करती तो शिव को अच्छा नही लगता था। मन होता उसके बोलते हुए अधरों पर हाथ रख दे ताकि शब्द वहीँ मौन हो जाएँ और वो अपनी बात पूरी ही न कर सके, पर वो मजबूर था क्योंकि बातचीत का माध्यम तो सन्देशों का आवागमन था। मिले तो सिर्फ एक ही बार थे और मुलाक़ात भी औपचारिक सी थी। कुछ पल एकांत में मिले थे, पर वो इतने कम थे की दोनों ही पूरी तरह खुल कर बात नहीं कर सके। शिवा और शिव दोस्त थे या यूँ भी कह सकते हैं दोस्त से बढ़कर थे, साथी थे एक दूसरे के, संगी थे हर एक पल के, साक्षी थे एक दूसरे के आंसू और मुस्कुराहट के और इस गहरी अटूट दोस्ती का माध्यम था सोशल मिडिया। बात भले ही संदेशों में होती थी पर एक दूसरे को महसूस करते थे दोनों।

शिवा उदासी में भी शिव से बात करना पसंद करती थी। शिव ही एक ऐसा व्यक्ति था जिससे वो अपने दिल की हर बात देर सवेर बता ही देती थी और शिव भी अपनी हर बात शिवा को बताता, कहाँ गया कब गया सब, पर जो बात सबसे पहले बताना चाहता था वो कभी नहीं बोल पाता, डरता था क्योंकि अनिश्चितता थी। संदेह थे कहीं शिवा बुरा मान गई और बात चीत बंद कर दी या दोस्ती तोड़ दी तो!! यह कल्पना भी उसे भयभीत कर जाती थी, यही डर शिव को दिल की बात कहने से हमेशा रोक लेता था। वो दिल ही दिल में अटूट प्रेम करता था शिवा से, तभी तो उसकी जरा सी तकलीफ शिव को व्यथित कर देती थी ।

उधर शिवा भी दिल ही दिल में शिव को बहुत प्यार करती थी.. पर कहने में डरती थी.. डर उसे भी इसी बात का था, कहीं शिव के मन में सिर्फ दोस्ती हुई और वो बुरा मानकर शिवा के जीवन से हमेशा के लिए चला गया तो…!!

एक अजीब उधेड़ बुन में थे दोनों, एक दूसरे के बिना रह भी नहीं पाते.. और दिल की बात कह भी नहीं पाते…।
धीरे-धीरे समय यूँ ही बीतता गया…शिव, शिवा के शहर में पढ़ने के लिए आया हुआ था.. अब उसकी पढ़ाई पूरी होने को आ गई थी.. और इधर शिवा रोज़ इन्तजार करती की आज तो शिव उससे दिल की बात कह ही देगा..! ख्यालो में ही लाखों सपने बुन लेती थी.. की वो क्या-क्या करेगी… कहाँ-कहाँ जायेगी शिव के साथ..! यहां तक कि शादी के बाद की जिंदगी के बारे में भी ख्याली पुलाव पकाती रहती थी ।
 
सुबह के 6 बजे नहीं की रोज की तरह शिव का सन्देश शिवा के मोबाइल पर दस्तक देता है .. गुड़ मॉर्निंग..
शिवा – काहे की गुड़ मॉर्निंग 
शिव – अरे यार गुस्से में क्यों हो… 
शिवा – हाँ बहुत जल्दी याद आई है न तुम्हे जो आपकी आरती उतारूँ ।
 
शिव – मुस्कुराते हुए…
अचानक घर जाना पड़ा था, शिवा जरूरी काम था.. माफ़ करना फोन यहीँ छूट जाने के कारण तुमसे बता नहीँ पाया..। 
शिवा – फोन कर सकते हो… तुरंत 
कुछ देर बाद फोन बजता है.. कॉल पर शिव ही था..
 
शिवा के फोन उठाते ही शिव बोलने लगता है.. देखो पहले ही माफ़ी मांग चुका हूँ, अब फोन पर लड़ना मत और शाम को कैसे भी करके मिलो न यार कुछ कहना है तुमसे.. इतने दिन से एक ही शहर में दो अजबनी की तरह हम बस फोन पर ही बात करते हैं। आज तुम्हे मिलना ही होगा.. दो साल से इन्तजार कर रहा था मैं पर अब बस आज कैसे भी मिलो ।
 
शिवा शांत रहती है.. सिर्फ ठीक है इतना ही कहा उसने.. मिलेंगे कहाँ.. शिवा ने पूछा.. तुम वो सब मुझपर छोड़ दो बस शाम को कैसे भी घर के बगल वाले गार्डन में आ जाना….शिव् ने कहा ।
 
अरे तुम्हे कुछ बात करनी थी न ?
तभी तो फोन करने को कहा तुमने बताओ क्या बात थी ? शिव ने पूछा । 
अब सब बात मिलकर ही होगी, अपना ख्याल रखना.. इतना कह कर शिवा ने फोन काट दिया ।
 
शिव की ख़ुशी का ठिकाना नहीँ था.. कितना इन्तजार किया था उसने शिवा से अपने प्यार का इजहार करने के लिए..
इतने दिनों बाद आखिरकार हिम्मत कर ही ली उसने की शिवा की आँखों में आँखे डालकर उसे बता सके की वो कितना प्यार करता है उससे ।
 
शाम के 5 बज रहे थे…
शिवा घर के बगल वाले गार्डन में गुमसुम सी यूँ बैठी थी जैसी जीवन से कोई लगाव ही न हो उसे..
हमेशा खुश रहने वाली शिवा के चेहरे पर हँसी तो दूर सामान्य मुस्कान तक नहीँ थी ।
 
तभी बहुत तेजी से एक बाइक आकर रुकी..
हाँ वो शिव ही था.. दोनों एक दूसरे के सामने थे.. शिव की ख़ुशी छिपाये नही छिप रही थी…!
शिवा शांत ही रही…और बोली –
तुम यहाँ क्यों आये हो पागल हो गए हो क्या… किसीने देख लिया तो पता है न क्या होगा ।  
शिव ने बोलती हुई शिवा के अधरों पर हाथ रख दिया.. उसका हाथ पकड़ा और बाइक से बहुत दूर ले आया उसे… जहाँ सिर्फ वो दोनों ही थे..! 

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आज इतनी चुप चुप क्यों हो…यूँ तो कितना बोलती हो;
आज क्या हुआ शर्मा रही हो क्या मुझसे…! शिव ने यह बात हँसते हुए कही।
उसका इतना कहना था की अचानक शिवा ने अपना चेहरा उसके सीने में छिपा लिया… अरे ये क्या तुम रो रही हो.. बात क्या है शिवा… कुछ तो बोलो यार… हुआ क्या? मेरा हाथ पकड़ना बुरा लगा तुम्हे इस कारण रो रही हो क्या ? हुआ क्या है यार कुछ तो बताओ…. शिव , शिवा को यूँ फूट -फूट कर रोता हुआ नहीँ देख पा रहा था ।

शिवा बिना कुछ कहे बस रोती रही और शिव उससे पूछता रहा । शिवा के आंसू पोछते हुए शिव ने उसे शांत किया.. बताओ न शिवा क्या हुआ है..
तुम जानती हो न मैं तुम्हे रोते हुए नही देख पाता… लड़ लो मुझसे !!
गुस्सा हो लो…पर यूँ रो कर सजा मत दो मुझे…

शिवा रोते हुए बोलती है – मेरी शादी तय हो गई, शिव…!!
पाँच दिन बाद इतने समय फेरे हो रहे होंगे… तुमने इतनी देर क्यों की !
मैं तो तुम्हारे इन्तजार में बैठी थी न… तुम तो मेरी हर ख़ामोशी समझ लेते थे… बोलो न फिर क्यों नही समझे तुम….!
2 साल में बहुत कुछ हो सकता था शिव क्यों नही की पहल तुमने…. क्यों नही आये मेरे घर पापा से मेरा हाथ मांगने…. तुम क्या पापा का सामना करते तुम तो मुझसे भी नहीँ कह सके… कहते कहते शिवा फिर रोने लगती है…!
 
ये क्या हो गया… क्यों कैसे… ठीक कहती हो तुम… मैंने खुद की गलती से तुम्हे खो दिया…
आज इतने दिन बाद हिम्मत की थी तुमसे दिल की बात कहने की.. और देखो न आज कहने से पहले ही ये हो गया..
मैं तुम्हारे बिना नहीँ रह सकता शिवा… तुम हो मेरे जीवन में तो ही ये जीवन है.. कहते-कहते शिव भी रोने लगता है ।
 
दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर रोने लगते हैं…! 
अगले दिन सुबह शिवा के घर के बाहर भीड़ इकट्ठा थी… पुलिस की दो तीन गाड़ियाँ भी खड़ी थीँ…।
पूरे घर में शोर फैला हुआ था पर उस शोर में ही अजीब सी खामोशी थी… पूरे घर में शिवा को ढूंढा जा चुका था उसका कहीं कोई पता नहीँ था…
आखिरी बार उसे पास वाले गार्डन में देखा गया था… उसके बाद किसी ने उसे नहीँ देखा ।
 
अचानक पुलिस वालों में से एक का फोन बजा..
हड़बड़ाया हुआ सा वो इंस्पेक्टर के कान में कुछ बोला – देखिये आपको हमारे साथ चलना होगा.. पुलिस वाले ने कहा ।
 
जी चलिए इंस्पेक्टर साहब… घर के सभी लोग साथ चल दिए….।
शिवा के घर से लगभग 25 की.मी की दूरी पर एक खंडहर से मंदिर पर आकर गाड़ियों का काफिला रुक गया….
हर ओर पहाड़ी.. दूर तक नीला आसमान… सामने बड़ा सा मन्दिर जिसकी दीवारें अब जर्जर हो चुकीं थी…
साथ ही के बड़े बरगद के पास दो एक लड़का और एक लड़की बैठे हुए थे… लड़के के कंधे पर लड़की का सिर झुका हुआ था… और लड़की सिर पर लड़का सिर टिका था…।

कुछ आपसी लोग वहाँ मौजूद थे… पुलिस वालों के आते ही वो लोग तुरंत वहाँ आ गए..।
साहब हमने ही आपको फोन किया था, कल रात 7 बजे से ये दोनों यही बैठे हैं…पर दोनों में ही कोई हलचल नहीँ है..!
 
पीछे से होते हुए पुलिस वालों के साथ घर वालें भी सामने आ गए..
लड़की का चेहरा देखते ही परिवार वालों फूट फूट कर रोने लगे.. माँ अपने होश खो बैठी पिता यूँ बैठ गए जैसा उनका संसार ही खत्म हो गया..। 

शिव के कंधे पर शिवा का सिर था, दोनों की उँगलियाँ आपस में फसीं हुई थी और साँसे…अपने गंतव्य को प्राप्त कर चुकी थी..।
 
तेज हवा चल रही थी… जिसके कारण मंदिर में लगी घण्टियाँ आपस में टकरा कर तेज ध्वनि कर रहीं थी… मानो सच्चे प्रेम के मिलाप का स्वस्तिवचन हो रहा हो। प्रेम आत्मा से आत्मा तक पहुँचने का सफर है, प्रेम अमर है.. प्रेम मरता नहीँ अनंत काल तक जीवित रहता है..।

इस कहानी का प्रथम भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें: पहली मुलाक़ात

लेखिका:
शाम्भवी मिश्रा

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