सुंदरता नारी के लिए वरदान या अभिशाप

हर एक स्त्री चाहे वो छोटी बच्ची हो या बड़ी लड़की या फिर वो महिला हो, सुंदरता उसको ईश्वर द्वारा दिये गये वरदान के रूप में मिला है जिस पर उन्हें सच में गौरवान्वित होना चाहिए। लेकीन हमारे समाज में व्याप्त कुछ बुरे लोग ईश्वर के इस सुन्दर वरदान को उस महिला के लिए अभीशाप भी बना देते हैं । स्त्री कि सुंदरता उसके स्त्रीत्व को पूर्ण करती है, पर कभी-कभी खुद स्त्री अपनी सुंदरता के कारण चंद कुचरित्र लोगों की नजरों केवल एक सुन्दर दिखने वाली वस्तु बनकर रह जाती है जो उसके लिए एक खास नजरिया रखते हैं। स्वयं स्त्री को कई मौकों पर ऐसा प्रतीत होता है कि सुंदरता शायद उनके लिए अभिशाप है , ईश्वर नें उन्हें सुन्दर बनाया ही क्यों है कि समाज उनको केवल एक खास नजरिये से देखता है।

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कहीं किसी को बेटी पैदा होने पर ख़ुशी नहीं होती तो किसी को बेटी होने पर यह चिंता सताती है कि कैसे वो अपनी बच्ची को समाज में मौजूद कुछ दूषित लोगों से सुरक्षित के रख पाएंगे। आज महिलायें भले ही पुरुषों के बराबरी में हो लेकीन आज भी माँ-बाप को अपनी बेटी के लिए इस दूषित समाज में सुरक्षा की चिंता लगी रहती है। हमारा पुरुष समाज ऐसा क्यों है? यह उनकी जिम्मेदारी है कि हम लोगों के मन से असुरक्षा के भय को दूर करे परन्तु ऐसा संभव नहीं हो पाता। भारत जैसा विशाल सांस्कृतिक देश जहाँ स्त्री देवी समान पूजी जाती है खुद अपने देश को भी हम भारत माता कह कर बुलाते हैं ऐसे में इस देश में एक स्त्री को दूषित नजरों से देखना मुझे चौंकाता है। आज भारतवर्ष का ऐसा कोई भी गाँव या शहर नहीं है जो स्त्री के लिए पूर्णतः सुरक्षित हो। हर एक जगह महिलाओं के लिए असुरक्षित होती जा रही है; एक स्त्री अपने घर परिवार से बाहर निकलते ही असुरक्षा महसूस करनें लगती है। जिस प्रकार पुरुष आज़ाद रूप से घूम सकते हैं क्या हम स्त्रियों का अधिकार नहीं है। कभी कभी ऐसा लगता है कि स्त्री की सुरक्षा उनके परिवार के बाद केवल कानून कि जिम्मेदारी है भारतीय पुरुष समाज कि नहीं।

ज्यों ज्यों आधुनिकता हमें घेरे जा रही है असुरक्षा कि भावना और भी गहरी होती जा रही है। बाहर फैली असुरक्षा धीरे-धीरे घर में भी प्रवेश करती जा रही है बाह्यसमाज में तो महिलाएं असुरक्षित थीं ही अब वो घर में भी असुरक्षा महसूस कर रही हैं। घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और लगातार बढ़ रहे अत्याचार से महिलाओं का उचित विकास नहीं हो पा रहा है। महिला सशक्तिकरण के लिए किये जा रहे इतने प्रयाशों के बाद भी महिलाओं के प्रति सोच में अभी तक बदलाव नहीं आया है स्त्री केवल भोग कि वस्तु बनकर रह गई है। अभी भी समाज में ऐसे लोग व्याप्त हैं जिनकी मानसिकता महिलाओं के लिए दूषित है; सम्पूर्ण हिंदुस्तान तो ईक्कीसवीं सदी में प्रवेश तो कर गया मगर क्या स्त्रियों का हक़ मिला ? हमारी नैतिकता ऐसी होनी चाहिए कि हर इंसान को सम्मान के साथ सामान अधिकार से जीने का हक हो, हम किसी के लिए हिंसक ना बनें और किसी के साथ जबरदस्ती ना करें। बहुत से ऐसे लोग समाज में हैं जो अपना पुरुषत्त्व दिखाने के लिए छोटी बात पर भी हिंसक हो जातें हैं और उनकी हिंसा का शिकार एक अबला कमजोर नारी ही बनती है जिसका कोई कसूर नहीं।

आयेदिन समाचार पत्रों व टीवी के माध्यम से हम यह जान पाते हैं कि भारतीय पुरुष समाज स्त्री के प्रति कितनी घिनौनी सोच रखता है।

– बच्चियों , लड़कियों और महिलाओं के प्रति बढ़ते शारीरिक दुष्कर्म।
– पति एवं ससुराल के लोगों द्वारा दी जाने वाली प्रताड़ना और दहेज़ उत्पीड़न।
– राह चलते मजनुओं की छेड़ – छाड़।
– प्रेम कि आड़ में यौन शोषण।
– राह चलते हो रहे एसिड अटैक।
– शिक्षा और नौकरी में भेदभाव।
– लड़कों जैसे सामान अधिकारों का ना होना।
– खुद के नजरिये से जीवन ना जी पानें कि विवशता।
– अपने ही बच्चे को अपने ही गर्भ में मार दिए जानें कि मजबूरी।

ऐसी जाने ही कितनी समस्याएं हैं जिसे स्त्री सहज स्वीकार कर लेती है और पुरुषप्रधान कहे जाने वाले समाज में मात्र एक कठपुतली की तरह जीने को बाध्य रहती है । दुःख की बात तब और होती है जब स्त्री का परिवार ही उसकी उपेछा करता है ; बचपन से उसे पराया धन मान कर पाला जाता है और एक दिन उससे हमेशा के लिये छुटकारा भी मिल जाता है परिवार वालों को।

हमारे देश में महिलाओं कि सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है मगर इसे केवल कानून का ही कर्तव्य माना जाता है जबकि महिला सुरक्षा एक सामाजिक कर्तव्य है। इतना जरूर कहूँगी कि बड़े शहरों में कुछ आंशिक बदलाव देखने को मिलते हैं पर फिर भी शोषण वहां भी है। जिस देश में नारी देवी हो, माता हो, जननी हो वहां उसके प्रति बढ़रहे अपराध देश में मौजूद पुरुष समाज के असल चरित्र को दर्शाते हैं।

नित् होनें वाले सामाजिक अपराध यह कहते हैं कि “नारी की सुंदरता उसके लिए वरदान नहीं बल्कि एक अभिशाप है” जिसे उसे भोगना ही होगा।