बीएचयू छात्राओं का दिशाहीन आंदोलन

बीएचयू पर एक नज़र:

बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की स्थापना सन 1916 में पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा की गयी। अतीत में बीएचयू को सेंट्रल हिन्दू कॉलेज के नाम से भी जाना जाता था। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का परिसर करीब 1300 एकड़ में फैला हुआ है, इतने बड़े ज़मीन का अनुदान कशी नरेश नें प्रदान किया था। बीएचयू को 6 संस्थानों और 14 संकायों और लगभग 140 विभागों में संगठित किया गया है। विश्वविद्यालय में कुल छात्रों का नामांकन 30,000 से अधिक है, और इसमें 34 से अधिक देशों के छात्र अध्ययनरत हैं। इसमें निवासी छात्रों के लिए 75 से अधिक हॉस्टल्स हैं। इंजीनियरिंग, प्रबंधन, भाषाविज्ञान, पत्रकारिता और जन संचार, कला, कानून, कृषि, चिकित्सा, पर्यावरण और सतत विकास के संस्थान सहित इसके कई कॉलेज विश्वविद्यालय की इंजीनियरिंग संस्थान को जून 2012 में एक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान नामित किया गया था। वर्तमान में बीएचयू के वॉइस चांसलर गिरीश चंद्र त्रिपाठी हैं जिन्हें हालिया BHU विवाद के बाद उनके पद से निष्काषित कर दिया गया है।

घटना और कथन:

वॉइस चांसलर गिरीश चंद्र त्रिपाठी का कथन:

व्यक्ति की अस्मिता का बहुत महत्व है पर संस्थानों की अस्मिता का भी ध्यान रखना चाहिए।”

धरना प्रदर्शन में शामिल एक छात्रा का कथन:

मैं ये नहीं जानती छेड़खानी करने वाले लड़के कैंपस के थे या बाहर के। ऐसे में गेट में आने-जाने वालों का रिकार्ड रखा जाए।”

उपरोक्त दोनों बिंदुओं की अपनी अहमियत है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। शिक्षण संस्थानों की अपनी गरिमा होती है उसका मान भी रखना चाहिए, पर पढ़ने वाली छात्राओं की भी अपनी इज़्ज़त आबरू है उसका मान भी रखा जाना चाहिए। फिलहाल ये वक़्त एक दूसरे के ऊपर दोषारोपण करने का नहीं है; ये वक़्त है मामले को पूरी तरह समझने का और उसपर उचित कार्यवाही करने का।

मामले पर गौर फ़रमाया जाय तो, बीएचयू के त्रिवेणी हॉस्टल में रहने वाली फाइन आर्ट्स की सेकंड ईयर छात्रा के साथ कुछ अज्ञात लड़कों नें छेड़खानी की। छेड़खानी की जो रिपोर्ट है उसमें यह कहा गया है कि उस छात्रा के कपड़े को खींचने का प्रयास कर उसमें हाथ डालने की कोशिश की गयी। यह वो समय था जब प्रधानमंत्री उसी शहर में अपनी यात्रा के दौरान मौजूद थे। घटना के दौरान उपस्थित छात्राओं का कहना है कि वे सभी वीसी सर को बुलाकर बात करना चाहती थीं पर वे नहीं आये। कुछ छात्राओं नें वीसी साहब के आवास के बाहर भी धरना प्रदर्शन किया जिसके उपरांत प्रशासन नें उनपर लाठीचार्ज कर दिया जिसमें छात्राएं घायल हो गयीं। धरना देने वाली छात्राओं का यह भी कहना है कि हमें हर वक्त ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और पहले भी इस तरह की गंभीर घटनाएं हुयीं हैं पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। उनके अनुसार बार बार घटने वाली यह घटना बर्दाश्त के बाहर है।

छात्राओं की मांग जायज है, उनकी सुरक्षा सर्वोपरी है। अगर ये घटनाएं बीएचयू में निरंतर हो रहीं हैं तो वीसी साहब को आगे आकर सुरक्षा सम्बंधित मसलों पर छात्राओं से सीधे बात करनी चाहिए। छात्राएं सड़क पर हों और वीसी अपने घर में आराम करें यह कहाँ उचित है। गंभीरता को देखते हुए वीसी गिरीश चंद्र को अपने आवास से बाहर आना चाहिए था और छात्राओं के सम्मुख हो उनकी बात को सुनना चाहिए था। वीसी सारी रात घर से बाहर नहीं आये जो कि गलत है, वे कुछ देर घर से बाहर आकर बात कर लेते तो क्या उनकी इज़्ज़त कम हो जाती।

क्या रही छात्राओं की गलती:

एक अच्छी पहल, अच्छी कोशिश। काश छात्राओं नें इतनी जल्दी ना दिखाई होती और सुबह होने तक का इंतज़ार किया होता तो यह आंदोलन (धरना) अपने मकसद में सफल होता जिसका पूरा श्रेय छात्राओं को जाता। मामले पर ध्यान दें तो सब बड़ी जल्दी-जल्दी में हुआ – प्रधानमंत्री शहर में, अज्ञात लड़कों का छात्रा को छेड़ना, फिर उनका बाइक से फरार हो जाना, उसके उपरांत छात्राओं का तत्काल धरना देना, वीसी से मिलने की ज़िद्द पर अड़े रहना इत्यादि।

छात्राओं का आंदोलन हाईजैक कर ले गए वहां के उदंड लड़के। यही सबसे बड़ी भूल रही छात्राओं की, नारी की बात नारी तक रहती तो देश यह देखता कि आज की नारी अपने हक़ की बात कैसे करती है। लड़कों के विरोध में यह धरना था जिसमें फिर लड़के ही शामिल हो गए। लड़कियों को इस धरने को अपना आंदोलन बनाना चाहिए था न की लड़कों को कोई अवसर देना चाहिए था। जिन लड़कों को साथ लेकर लड़कियां धरना दे रहीं थीं वे लड़के तब कहाँ रहते थे जब छात्राओं के साथ छेड़खानी होती थी ? कोई किसी छात्रा के कुर्ते में हाथ डाल दे और वहां कोई पुरुष विद्यार्थी न हो जो उनकी रक्षा करे ये अजीब बात है। खैर, कहने का अर्थ बस यही की धरना प्रदर्शन लड़कियों नें अच्छा काम किया था पर उनको पुरुष विद्यार्थियों को अपने साथ शामिल नहीं करना चाहिए था।

बीएचयू में केवल पुरुष अध्यापक तो नहीं होंगे ! वहां निश्चित ही अनगिनत महिला अध्यापिकायें भी होंगी; अगर छेड़खानी की घटना निरंतर होती है तो फिर वे अध्यापिकायें इसका विरोध क्यों नहीं करतीं ? क्या वहां की छात्राओं नें पढ़ाने वाली अध्यापिकाओं को इससे अवगत नहीं कराया ? महिला अध्यापिकाओं का यह कर्तव्य है की वे कॉलेज परिसर में छात्राओं से सम्बंधित होने वाली गलत घटनाओं को लेकर वीसी या अन्य सीनियर बॉडी से बात करें। पर क्या कभी ऐसा हुआ ? सब एक बार में ही वीसी पर क्यों झपट गयीं। वीसी के नीचे भी कई एडमिन बॉडी हैं जिसमें महिला और पुरुष दोनों संभवतः होंगे; तो क्या छात्राओं को थोड़े धैर्य के साथ उनके सम्मुख भी अपनी बात नहीं रखनी चाहिए थी।

छेड़खानी अगर हमेशा होती थी या होती है तो उसको लेकर नजदीकी पुलिस थाने में भी जाया जा सकता है। बीएचयू में होने वाली छेड़खानी की घटनाओं संबंधित लड़कियों नें क्या पूर्व में किसी तरह की कंप्लेंट दर्ज कराई है। वीसी प्रशासन से बड़ा नहीं है, अगर वह बात नहीं सुनता तो फिर उसकी शिकायत थाने में की जा सकती है।

छात्राओं का यह बेहतरीन आंदोलन उनकी आँख के सामने राजनीतिक अखाड़े में तब्दील हो गया और वे उसका विरोध करने के बजाय उसे ही अपनी सुरक्षा समझ बैठीं। लड़कियों के धरने में कांग्रेसी नेता राज बब्बर का शामिल होना, धीरे धीरे समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं का शामिल होना एक अच्छे खासे मुद्दे को राजनीतिक रंग में ढाल गया। लड़कियों नें इन नेताओं व् इनके कार्यकर्ताओं का विरोध तक नहीं किया। ये सारे नेता अथवा कार्यकर्त्ता तब कहाँ रहते थे जब लड़कियों को छेड़ा जाता था ?

कहा जा रहा है कि लाठी चार्ज में 20 से 25 लड़कियों और लड़कों को चोटें आयीं हैं !! यह बात हजम नहीं हुई ! केवल 20 से 25 ? बीएचयू में कुल 30,000 से अधिक छात्र छात्राएं हैं। अगर मैं केवल फाइन आर्ट्स फैकल्टी की बात करूँ तो वहाँ भी लड़कियों की संख्या काफी ज्यादा होगी, ऐसे में धरना कितनी लड़कियां दे रहीं थी ? क्या उनकी संख्या थी ? पूरा खेल साफ़ है – वहाँ ज्यादातर लोग बाहरी थे। लोकल छुटभैया नेता थे, जो बाहरी लड़के वहां प्रतिदिन प्रांगड़ में घूमते हैं वे थे। यह भी लड़कियों की एक विफलता रही की वे बाहरियों के हस्तछेप का विरोध नहीं कर पायीं।

लड़कियों का कहना था की – हम सभी शांति पूर्वक धरना दे रहीं थीं और बस वीसी सर को बुलाना चाहती थी। फिर वहां कैंपस में पेट्रोल बम किसने बजाया ? फिर वहां बाइक में आग किसने लगाई ? फिर वहां पंडित मदन मोहन मालवीय की मूर्ति पर कालिख किसने पोती ? इसका जवाब लड़कियों से ही माँगा जाय तो बेहतर है। लाठीचार्ज अगर शांति से बैठी लड़कियों पर किया गया है तो वह एक अपराध है पर अगर आगजनी के बाद लाठीचार्ज किया गया है तो वह जरूरी है।

यह कहना पूर्णरूप से सही है कि छात्राओं का आंदोलन दिशाहीन था या फिर दिशाहीन कर दिया गया। ऐसा क्यों होता है ? हर सामाजिक विषय राजनीतिज्ञों के हाथों कैसे बर्बाद हो जाता है। देश में खाली बैठी मीडिया और मीडिया में दलाल पत्रकारों को BHU हुड़दंग कुछ समय के लिए जायकेदार खबर दे गया पर असल में पत्रकारों की अलग-अलग लॉबी नें एक अच्छे विषय का सत्यानाश कर दिया। यह विषय न तो बीजेपी का था, न कांग्रेस का था और ना ही किसी अन्य राजनीतिक पार्टी या सामाजिक दल का। यह विषय था लड़कियों की सुरक्षा का, जिसे लड़कियों नें ही उठाया था और लड़कियों तक ही सिमित रहने दिया जाना चाहिए था। पर सांत्वन व् उदारता दिखाने के साथ केंद्र पर हमला करने के मंसूबे से कूदे राजनीतिक दल व् उनके कार्यकताओं नें बेचारी छात्राओं के हक़ की आवाज़ को ही दबा दिया।

मैं बीएचयू वॉइस चांसलर गिरीश त्रिपाठी को दोषी मानता हूँ की वे जल्दी सामने नहीं आये; वे आते पीड़ित छात्रा की बात सुनते उसे सुरक्षा का विश्वास दिलाते तो फिर ये हुड़दंड की नौबत ही नहीं आती। वीसी साहब की मुँह चोरी सारे भूचाल की जिम्मेदार है। ”

रही बात छात्राओं की तो मैं यही सलाह दूंगा कि – अपने मुद्दे अपने दायरे में रखो। तुम आज 21वीं सदी की पढ़ी लिखी नारी हो, तुम अकेले अपनी आवाज़ बुलंद कर सकती हो। खुद की सुरक्षा या अधिकार संबधित मुद्दे में लड़के या अन्य किसी पुरुष दल को शामिल करने की कोई आवश्यकता नहीं।

यह भी अजब संयोग है की 1828 में जन्मी मणिकर्णिका उर्फ़ मनुबाई (रानी लक्ष्मी बाई या झांसी की रानी) भी इसी वाराणसी के पवित्र धरती से थीं। रानी लक्ष्मी बाई नें 1857 के संग्राम के दौरान महिला सेना का निर्माण किया और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया। उसी दौरान पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं द्वारा किये गए आक्रमण को रानी नें ध्वस्त कर दिया। अगले वर्ष 1858 में रानी, ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते वीर गति को प्राप्त हुयीं। नारी का इतना मजबूत इतिहास क्या किसी लड़की नें पढ़ा ? Women Empowerment की बात करने वाली पढ़ी लिखीं समझदार लड़कियां असल में मानसिक स्तर से कितनी कमजोर हो चुकीं हैं BHU की घटना साफ़ उसके दर्शन करा रही है।

आज के दौर में न नारी को तलवार चलाना है और ना ही घोड़े पर बैठकर युद्ध लड़ना है फिर वो इतनी असज क्यों है की उसे अपनी बात रखने के लिए पुरुषों का सहारा लेना पड़ता है। बीएचयू में छात्राओं का धरने से बना आंदोलन; पुरुष पत्रकारों, पुरुष विद्यार्थियों, पुरुष उप्रद्रवियों और पुरुष राजनेताओं के हाथों मसल कर रह गया। काश लड़कियों नें वाराणसी में जन्मी रानी लक्ष्मी बाई को जाना होता तो यह दुर्दशा न होती। पूरे प्रकरण में असल मुद्दा गायब हो गया और रह गया तो केवल…तू तू मैं मैं…की राजनीति; ठहरा दिया जिम्मेदार देश की प्रधान सत्ता को और हो गयी तसल्ली। आवाज़ बंद, माइक बंद, कैमरा बंद……तमाशा ख़तम!!

 

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा